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मेघदूतम्
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त्वामप्यस्त्रं नवजलमयं मोचयिष्यत्यवश्यं
प्रायः सर्वो भवति करुणावृत्तिरार्द्रान्तरात्मा । उ० मे० 35
तुम भी उसकी दशा पर अपने नये जल के आँसू बहाए बिना न रह सकोगे, क्योंकि दूसरों का दुख देखकर कौन ऐसा कोमल हृदय वाला है, जो पसीज न जाय । अस्त्रस्तावन्मुहुरुपचितैर्दृष्टिरालुप्यते यै
क्रूरस्तस्मिन्नपि न सहते संगमं नौ कृतान्तः । उ० मे० 47
उस समय आँसू ऐसे उमड़ पड़ते हैं कि भर आँख देखने भी नहीं देते। निर्दयी काल को हमारा चित्र में मिलना भी नहीं सुहाता।
3. नयनसलिल [नी + ल्युट् + सलिलम् ] आँसू ।
तस्मिन्काले नयनसलिलं योषितां खण्डितानां
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शान्तिं नेयंप्रणयिभिरतो वर्त्म भानोस्त्यजाशु । पू० मे० 43
उस समय बहुत से प्रेमी लोग अपनी उन प्यारियों के आँसू पोंछ रहे होंगे, जिन्हें रात को अकेली छोड़कर वे कहीं दूसरी ठौर पर रमे होंगे। इसीलिए उस समय तुम सूर्य को भी मत ढकना ।
तन्त्रीमार्गां नयनसलिलैः सारयित्वा कथंचिद्
भूयो भूयः स्वयमपि कृतां मूर्च्छनां विस्मरन्ती । उ० मे० 26
वह अपनी आँखों के आँसुओं से भीगी हुई वीणा को तो जैसे-तैसे पोंछ लेगी, पर वह अपने साधे हुए स्वरों के उतार-चढ़ाव को भी बार-बार भूल रही होगी । मत्संभोगः कथमुपनयेत्स्वप्नजोऽपीति निद्राम्
इन्द्रचाप
1. इन्द्रचाप - [ इन्द्र + चापम् ] इंद्रधनुष ।
आकाङ्क्षन्त नयन सलिलोत्पीडरुद्धावकाशाम् । उ० मे० 33
वह यह सोचकर अपनी आँखों में नींद बुला रही होगी कि किसी प्रकार स्वप्न में ही प्यारे से संभोग हो जाय, पर आँखों से लगातार बहते हुए आँसू, उसकी आँखें भी नहीं लगने देते होंगे।
विद्युत्वन्तं ललितवनिताः सेन्द्रचापं सचित्रा:
संगीताय प्रहतमुरजाः स्निग्ध गंभीरघोषम् । उ० मे० 1
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