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शय्या
1. शय्या :- [शी आधारे क्यप्+टाप्] बिस्तरा, बिछौना ।
तस्याः करिष्यसामि दृढ़ानुतापं प्रवालशय्याशरणं शरीरम् | 3/8
उसके मन में ऐसा पछतावा उत्पन्न करता हूँ कि वह अपने आप आकर आपके पत्तों के ठण्डे बिछौने पर लेट जायगी ।
कालिदास पर्याय कोश
या दास्य मध्थस्य लभेत नारी सा स्यात्कृतार्था किमुतांकशय्याम् । 7/65 जो स्त्री इनकी दासी भी हो जाय वह भी धन्य हो जाय, फिर जो इनकी गोद में जाकर लेटे, उसका तो कहना ही क्या है ।
कनककलशयुक्तं भक्तिशोभासनाथं
क्षितिवरचितं शय्यं कौतुकागारमागात् । 7/94
पार्वतीजी का हाथ अपने हाथ में लेकर उस शयन- घर में पहुँचे। जहाँ सेज बिछी हुई थी, फूलों की मालाएँ सजी हुई थीं और सोने का कलश भरा धरा था । 2. संस्तर :- [ सम् + स्तृ+अप्] शय्या, पलंग, बिस्तर ।
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नवं पल्लव संस्ततरे यथा रचयिष्यामि तनुं विभावसौ । 4/34
चिता की आग में चढ़कर उसी प्रकार लेट रहूँगी, जैसे कोई नई-नई लाल कोपलों से सजी हुई सेज पर जा सोवे ।
कुसुमास्तरणे सहायतां बहुशः सौम्य गतस्तत्वभावयोः । 4/35
हे वसन्त ! तुमने बहुत बार हम लोगों को फूल के बिछौने बनाने में सहायता दी है।
स्वेद
1. स्वेद : - [ स्विद् भावे घञ् ] पसीना, श्रमबिन्दु, पसेड़ ।
2. श्रमवारिलेश
स्वेदोद्गमः किं पुरुषाङ्गनानां चक्रे पदं पत्र विशेषकेषु । 3 / 33 किन्नरियों के मुख पर चीती हुई चित्रकारी पर पसीना आने लगा। पसीना, श्रमबिन्दु | गीतान्तरेषु श्रमवारिलेशैः किंचित्समुच्छ्वासितपत्रलेखम् । 3 / 38 किन्नर लोग गीतों के बीच में ही अपनी प्रियाओं के वे मुख चूमने लगे, जिन पर थकावट के कारण पसीना छा गया था ।
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