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अद्रि
1. अचल -पहाड़, चट्टान्।
छन्नोपान्तः परिणतफल द्योतिभिः काननादैस्त्वय्यारुढे शिखरमचलः स्निग्धवेणी सवर्णे। पूर्व मेघ० 18 पके हुए फलों से लदे आम के वृक्षों में घिरा हुआ आम्रकूट पर्वत पीला सा हो गया होगा। उसकी चोटी पर जब तुम कोमल बालों के जूड़े के समान सांवला रंग लेकर चढ़ोगे। आसीनानां सुरभित शिलं नाभिगन्धैर्मंगाणां तस्या एव प्रभवमचलं प्राप्य गौरं तुषारैः। पू० मे० 56 वहाँ से चलकर जब तुम हिमालय पर्वत की उस हिम से ढकी चोटी पर बैठकर थकावट मिटाओगे, जिसकी शिलाएं कस्तूरी हिरणों के सदा बैठने से महकती
रहती हैं। 2. अद्रि- [अद् + क्रिन्] पहाड़, पत्थर।
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्तः स कामी। नीत्वा मासान्कनकवलय भ्रंशरिक्त प्रकोष्ठः।। पू० मे० 2 वह यक्ष अपनी पत्नी से बिछुड़ने पर सूखकर काँट हो गया, उसके हाथ के सोने के कंगन भी ढीले होकर निकल गये और यों ही रोते कलपते उसने कुछ महीने तो उस पहाड़ी पर जैसे-तैसे काट दिए। अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किंस्विदित्युन्मुखीभिदृष्टोत्साहश्चकित चकितं मुग्धसिद्धाङ्गनाभिः।। पू० मे० 14 इस पहाड़ी से जब तुम ऊपर उड़ोगे, तब तुम्हारा उड़ना देखकर सिद्धों की भोली-भाली स्त्रियाँ आँखें फाड़-फाड़ कर तुम्हारी और देखती हुई सोचेंगी, कि कहीं पहाड़ी की चोटी को पवन तो नहीं उड़ाए लिए जा रहा है।
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