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कुमारसंभव
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लजाती हुई पार्वती जी को अरुन्धती जी ने झट उठाकर अपनी गोद में बैठा
लिया। 2. व्रीडा :-शर्म, लज्जा।
व्रीडा दमुं देवमुदीक्ष्य मन्ये संन्यस्त देहः स्वयमेव कामः। 7/67
वरन् कामदेव ही इनकी सुन्दरता को देखकर टीस के मारे स्वयं जल मरा। 3. ह्री:-लज्जा, शर्म।
तां वीक्ष्य सर्वावयवानवद्यां रेतरपि ह्रीपदमादधानाम्। 3/57 कामदेव ने जब रति को भी लजाने वाली, अधिक सुघर अंगों वाली पार्वती जी को देखा। ह्रीमान भूभूमिधरो हरेण त्रैलोक्यवन्द्येन कृतप्रणामः। 7/57 शंकरजी ने जब पहले हिमालय को प्रणाम किया, तो वह लाज से गड़ गया। हीयन्त्रणां तत्क्षणम् मन्वभूवन्नन्योलोलानि विलोचनानि। 7/75 इस प्रकार एक दूसरे को चाह-भरी चितवन से देखकर उनके हृदय में फिर बड़ी लज्जा भी आ जाती थी। नाकरोदप कुतूहलह्रिया शंसितुं तु हृदयेन तत्वरे। 8/10 ये चाहते हुए भी लज्जा के मारे उनसे बता नहीं पाती थीं। तत्क्षणं विपरिवर्तित ह्रियोर्नेष्यतेः शयनमिद्धरागयोः। 8/79 उनकी लाज जाती रही, उनका काम बढ़ गया और उसी दशा में वे शयनागर में पहुँचाई गईं।
लता
1. लता :-[लत्+अच्+टाप्] बेल, फैलने वाला पौधा।
लतावधूभ्यस्तरवोऽप्यवापुर्विनम्रशाखा भुजबन्धनानि। 3/39 वृक्ष भी अपनी झुकी हुई डालियों को फैला-फैला कर उन लताओं से लिपटने लगे। पर्याप्त पुष्प स्तवकावनम्रा संचारिणी पल्लविनी लतेव। 3/54 फूलों के गुच्छों के भार से झुकी हुई नई लाल-लाल कोंपलों वाली चलती-फिरती लता हों। लतासु तन्वीषु विलासचेष्टितं विलोलदृष्टं हरिणांगनासु च। 5/13
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