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कालिदास पर्याय कोश
मनीषिताः सन्ति गृहेषु देवतास्तपःक्व वत्से क्वच तावकं वपुः। 5/4 वत्से! तुम्हारे घर मे ही इतने बड़े-बड़े देवता हैं कि तुम जो चाहो उनसे माँग लो। बताओ कहाँ तो तपस्या और कहाँ तुम्हारा कोमल शरीर। गृह यन्त्र पताकाधीर पौरादरनिर्मिता। 6/41 मानो घरों पर डंडे खड़े करके उनमे झंडियाँ बाँध दी गई हों। वैवाहिकैः कौतुक संविधानै गुहे गृहे व्यग्रपुरंधिवर्गम्। 7/2 उस नगर के घर-घर में सब स्त्रियाँ बड़ी धूम-धाम के साथ विवाह का उत्सव
मना रही थीं। 3. प्रासाद :-पुं० [प्रसीदन्त्यस्मिन्नित। प्रसिद्+हलश्च इत्यधिकरणे करणे घञ्]
मकान, भवन, महल। प्रासादमालसु बभूवुरित्थं त्यक्तान्यकार्याणि विचेष्टितानि। 7/56 नगर की सब सुन्दरियाँ अपना-अपना सब काम काज छोड़कर अपने भवनों की
छतों पर आ खड़ी हुईं। 4. हर्म्य :-क्ली० [हरति जनमनां सीति। ह+यत्+मुद् च] महल, भवन।
यत्र स्फटिक हर्येषु नक्त मापान भूमिषु। 6/42 स्फटिक के भवनों में सजे हुए मदिरायल पर ।
आलि 1. आलि :-स्त्री० [आलि+ङीष्] सखी, वयस्या, सेतु।
निवार्यतामालि किमाप्ययं बटुः पुनर्विवक्षुः स्फुरितोत्तराधरः। 5/83 यह देखकर वे अपनी सखी से बोलीं-देखो सखी! इन ब्रह्मचारी के ओठ फड़क रहे हैं। ये फिर कुछ कहना चाहते हैं। एवमालि निगृहीत साध्वसं शंकरो रहसि सेव्यतामिति। 8/5 पार्वती जी की सखियाँ इन्हें सिखाया करती थीं, कि देखो सखी तुम डरना मत
जैसे-जैसे हम सिखाती हैं, वैसे ही वैसे अकेले में शंकर जी के पास रहना। 2. सखि :-स्त्री० [सख्यशिश्वीति भाषायाम्' इति ङीष] सखी।
रेमे मुहुर्मध्यगता सखीनां क्रीडारसं निर्विशतीव बाल्ये। 1/29 पार्वती जी का अपनी सखियों के साथ खेलते-कूदते पूरा बचपन बीत गया। तस्याः सखीभ्यां प्रणिपातपूर्वं स्वहस्तलूनः शिशिरात्ययस्य। 3/61
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