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कुमारसंभव
जैसे दिन में दिखाई देने वाले निस्तेज चन्द्रमा की किरण साँझ होने की बाट जोहती है। वद प्रदोषे स्फुटचन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/44 बताइए बढ़ती हुई रात की सजावट खिले हुए चन्द्रमा और तारों से होती है, या
सबेरे के सूर्य की लाली से। 6. यामिनी :-[याम+इनि+ङीप] रात।
यामिनी दिवससंधि संभवतेजसि व्यवहिते सुमेरुणा। 8/55 सूर्यास्त हो जाने से रात और दिन का मेल करने वाली साँझ का सब प्रकाश
सुमेरु पर्वत के बीच में आ जाने से जाता रहा। 7. रजनी :-[रज्यतेऽत्र, रञ्ज+कनि वा ङीप] रात।
भवन्ति यत्रौषधयो रजन्यामतैलपूराः सुरतप्रदीपाः। 1/10 रात को चमकने वाली जड़ी बूटियाँ उनकी काम-क्रीड़ा के समय बिना तेल के दीपक बन जाती हैं। रजनीतिमिरावगुण्ठिते पुरमार्गेघनशब्दविल्कवाः। 4/11
अब वर्षा के दिनों में रात की घनी अंधियारी से भरे डरावने नगर के मार्गों में बिजली की कड़कड़ाहट से डर उठने वाली। 8. रात्रि:-[राति सुखं भयं वा रा+त्रिप् वा ङीप्] रात।
स्वकालपरिमाणेन व्यस्तरात्रि दिवस्यते। 2/8
आपने समय की जो माप बना रखी है, उसके अनुसार जो दिन और रात होते हैं। निनाय सात्यन्त हिमोत्किरानिलाः सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा। 5/26 पूस की जिन रातों में वहाँ का सरसराता हुआ पवन चारों ओर हिम ही हिम बिखरेता चलता था। रात्रिवृत्तमनु योक्तुमुद्यतं सा प्रभात समये सखीजनम्। 8/10 जब इनकी सखियाँ इनसे रात की बातें पूछने लगती। एतदुद्गिरति चन्द्रमण्डलं दिग्रहस्यमिव रात्रिनोदितम्। 8/60 जो चन्द्रमा दिनभर दिखाई नहीं देता था, वह उस समय निकला हुआ ऐसा
लगता है, मानो रात के कहने से। 9. विभावरी :-[वि+भावनिप् ङीप्, र आदेश:] रात।
वद प्रदोषे स्फुट चन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/44
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