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कालिदास पर्याय कोश विकीर्ण सप्तर्षिबलिप्रहासि भिस्तथान गांगैः सलिलैर्दिवश्च्युतैः। 5/37 सप्त ऋषियों के हाथ से चढ़ाए हुए पूजा के फूल और आकाश से उतरी हुई गंगा की धाराएँ हिमालय पर गिरती हैं। भूमेर्दिवामिवारूढं मन्ये भवनुग्रहात्। 6/55
पृथ्वी पर रहते हुए भी स्वर्ग में चढ़ गया हूँ। 3. स्वर्ग :-[स्वरितं गीयते-गै+क, सु+ऋज्+घञ्] बैकुण्ठ, स्वर्ग।
कर्म यज्ञः फलं स्वर्गस्तासां त्वं प्रभवो गिराम्। 2/12 जिसके मंत्रों से यज्ञ करके लोग स्वर्ग प्राप्त कर लेते हैं। भुवनालोकनप्रीतिः स्वर्गिभिर्नानुभूयते। 2/45 पहले देवता लोग विमानों पर चढ़कर इस लोक से उस लोक में घूमते फिरते थे। स्वर्गाभिष्यन्दवमनं कृत्वेवोपनिवेशितम्। 6/37 मानो स्वर्ग का बढ़ा हुआ धन निकालकर इसमें ही ला भरा हो। स्वर्गाभिसंधि सुकृतं वञ्चनामिव मेनिरे। 6/47 स्वर्ग के लिए इतनी तपस्या करके हम लोग ठगे ही गए।
दंष्ट्रा 1. दंष्ट्रा :-[दंश्+ष्ट्रन्+टाप्] बड़ा दाँत, हाथी का दाँत, विषैला दाँत ।
महावराहदंष्ट्रायां विश्रान्ताः प्रलयादि। 6/8 जो प्रलय के समय वराह भगवान् के जबड़ों से उबारी हुई पृथ्वी के साथ-साथ
उनके जबड़ों में विश्राम किया करते हैं। 2. दशन् :- [दंश्+ल्युट् वि० नलोप:] दांत, काटना ।
अथ मौलिगतस्येन्दोर्विशदैर्दशनांशुभिः। 6/25 अपनी मन्द हँसी के कारण चमकते हुए दाँतों की दमक से।
दण्ड
1. दण्ड :-[दण्ड्+अच्] यष्टिका, डंडा, छड़ी, गदा, मुद्गर, सोटा।
यमोऽपि विलिखन्भूमिं दंडेनास्तमितित्विषा।। 2/23
अपने निस्तेज दण्ड से पृथ्वी को कुरेदते हुए यमराज ऐसे क्यों लग रहे हैं। 2. वेत्र :-[अज्+वल्, वी भावः] वेत, नरसल, लाठी, छड़ी।
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