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कालिदास पर्याय कोश
सर्वाभिः सर्वदा चन्द्रस्तं कलाभिनिषेवते। 2/34 चन्द्रमा वहाँ पूरे महीने भर अपनी पूरी कला लेकर चमका करता है।
पुंस
1. पुंस :-पुं० [पा+डुयसुन्] पुरुष, नर, इंसान, मानव।
स्त्री पुंसावात्म भागौ ते भिन्न मूर्तेः सिसृक्षया। 2/7 आप ही जब स्त्री और पुरुष की सृष्टि करने चलते हैं, उस समय आपके ही स्त्री और पुरुष दो रूप बन जाते हैं। अप्य प्रसिद्धं यशसे हि पुंसा मनन्य साधारणमेव कर्म। 3/19 संसार में ऐसा असाधारण काम करने से ही यश मिलता है, जिसे कोई दूसरा न
कर सके। 2. पुरुष :-[पुरि देहे शेते-शी+ड, पुट् कुषन्] नर, मनुष्य, मनुष्य जाति।
ददृशे पुरुषाकृति क्षितौ हरकोपानल भस्मकेवलम्। 4/3 महादेव जी के क्रोध से जली हुई पुरुष के आकार की एक राख की ढेर सामने पृथ्वी पर पड़ी हुई है। अणिमादि गुणोपेतमस्पृष्ट पुरुषान्तरम्। 6/75 आप तो जानते ही होंगे कि अणिमा आदि आठों सिद्धियों के जो स्वामी हैं।
पतंग 1. पतंग :-[पतन् उत्प्लवन्, गच्छति-गम्+ड, नि०] पक्षी, सूर्य, शलभ, टिड्डी,
टिड्डा। कामस्तु बाणवसरं प्रतीक्ष्य पतंगवद्वह्नि मुखं विविक्षुः। 3/64 जैसे कोई पतंगा आग में कूदने को उतावला हो, वैसे ही कामदेव ने भी सोचा कि बस बाण छोड़ने का यही ठीक अवसर है। अहमेत्य पतंग वर्मना पुनरंकाश्रयणी भवामिते। 4/20 उससे पहले ही पतंगे के समान मैं आग में जलकर तुम्हारी गोद में जा पहुँचती
2. शलभ :-[शल्+अभच्] टिड्डा, टिड्डी, पतंगा।
शृणुयेन स कर्मणा गतः शलभत्वं हरलोचनार्चिषि। 4/40 यह महादेवजी की आँख की ज्वाला में पतंग बनकर कैसे जला, वह सुनो।
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