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कालिदास पर्याय कोश
नून मुन्न मति यज्वनां पतिः शार्वरस्य तमसो निषिद्धये । 8 /58
इससे यह निश्चय जान पड़ रहा है, कि रात का अँधेरा दूर करने के लिए चन्द्रमा निकले चले आ रहे हों ।
2. प्रिय :- वि० [ प्री+क] प्रिय, प्यारा, प्रेमी, पति ।
तया व्याहृत संदेशा सा वभौ निभृता प्रिये । 6//
प्रेम में पगी हुई पार्वती जी अपनी सखी के मुँह से महादेव जी को यह संदेश कहलाती हुई ।
हरो याने त्वरिता बभूव स्त्रीणां प्रियालोकफलो हिवेश: 17/22
महादेवजी से मिलने के लिए मचल उठीं, क्योंकि स्त्रियों का शृंगार तभी सफल होता है, जब पति उसे देखे ।
यद्रतं च सदयं प्रियस्य तत्पार्वती विषहते स्म नेतरत् । 8/9
और बहुत धीरे-धीरे संभोग करते थे, तो ये आना-कानी नहीं करती थीं, पर जहाँ वे इससे आगे बढ़े कि ये घबरा उठतीं ।
3. भर्ता :- पुं० [ भृ+तृच् ] पति, प्रभु, स्वामी ।
अज्ञात भर्तृ व्यसना मुहूर्तं कृतोपकारेव रतिर्बभूव । 3 / 73
मानो भगवान ने कृपा करके उतनी देर के लिए पति की मृत्यु का ज्ञान हर कर उसे दुःख से बचाए रखा।
भवन्त्यव्यभिचारिण्यो भर्तृरिष्टे पतिव्रताः । 6/86
जो सती स्त्रियाँ होती हैं, वे किसी भी बात में पति से बाहर नहीं होतीं। भर्तृवल्लभतया हि मानसीं मातुरस्यति शुचं वधूजन: । 8 / 12
जब माता यह देख लेती हैं कि मेरी कन्या का पति कन्या को प्यार करता है, तो उसका जी हल्का हो जाता है।
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4. वर :- वि० [ वृ+कर्मणि अप्] दूल्हा, पति ।
गुरुः प्रगल्भेऽपि वयस्यतोऽस्यास्तस्थौ निवृत्तान्यवराभिलाषः । 1/51 यद्यपि पार्वतीजी सयानी होती जा रही थीं, पर नारद जी की बात से हिमालय इतने निश्चिन्त हो गए, ,कि उन्होंने दूसरा वर खोजने की चिन्ता छोड़ दी । तदर्ध भागेन लभस्व कांक्षितं वरं तमिच्छामि च साधुवेदितुम् । 5/50 वह साधु बोला उसका आधा भाग आप ले लीजिए और आपकी जो भी साधें हों, सब उनसे पूरी कीजिए। पर हाँ, इतना तो कम से कम बता दीजिए कि वह है कौन?