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कालिदास पर्याय कोश
पुष्पं प्रवालो पहितं यदि स्यान्मुक्ताफलं वा स्फुट विदुमस्थम्। 1/44 जैसे लाल कोपलों पर कोई उजला फूल रखा हुआ है, या स्वच्छ मूंगे के बीच में मोती जड़ा हुआ हो। तस्याः करिष्यामि दृढ़ानुतापं प्रवालशय्या शरणं शरीरम्। 3/8 मैं उसके मन में ऐसा पक्षतावा उत्पन्न करता हूँ, कि वह अपने आप आकर आपके पत्तों के ठण्डे बिछौने पर लेट जायेगी। अपित्वदावर्जितवारि संभृतं प्रवाल मासानुबन्धि वीरुथाम्। 5/34 आपके हाथों से सींची हुई इन लताओं में कोमल लाल-लाल पत्तियों वाली वे कोपलें तो फूट आई होंगी।
पन्नग 1. पन्नग :-[पद्+क्त+गः] साँप, सर्प।
पराभिमझे न त्वास्ति कः करं प्रसारेयेत्पन्नगरत्नसूचये। 5/43 यह भी नहीं हो सकता कि कोई शत्रु आपका अपमान करे, क्योंकि ऐसा कौन
है, जो साँप की मणि लेने के लिए उस पर हाथ डालेगा। 2. भुजंग :-[भुजः सन गच्छति गम्+खच्; मुम् डिच्च] सांप, सर्प।
स्थिर प्रदीप्ता मेत्य भुजंगाः पर्युपासते। 2/38 बड़े-बड़े साँप अपने मणियों के न बुझने वाले दीप ले-लेकर उसकी सेवा किया करते हैं। भजंग मोनन्दजटाकलापं कर्णावसक्त द्विगुणाक्षसूत्रम्। 3/46 साँपों से उनकी जटा बँधी हुई है, दाहिने कान पर दुहरी रुद्राक्ष की माला टंगी है। यथा प्रदेशं भुजगेश्वराणां करिष्यतामाभरणान्तरत्वम्। 7/34 उनके शरीर के बहुत से अंगों में जो साँप लिपटे हुए थे, वे भी उन-उन अंगों के आभूषण बन गए।
पाण्डु 1. पाण्डु :-वि० [पण्ड्+कु नि० दीर्ध:] पीत्, धवल, सफेद सा, पीला।
पर्याक्षिपत्काचिदुदारबन्धं दूर्वावता पाण्डुमधूकदाम्ना। 7/14 फिर दूब में पिरोई हुई पीले महुए के फूलों की माला उनके जूड़ों में लपेटी।
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