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कालिदास पर्याय कोश
इन सबकी चमक से जगमगाता हुआ वह नगर ऐसा जान पड़ता था, मानो स्वर्ग
ही उतर कर वहाँ चला आया हो। 2. शोभ :-[शुभ ल्युट्] चमकना, उज्जवल होना, जगमगाना, खिलना।
बभूव तस्याश्चतुरस्रशोभि वपुविर्भक्तं नवयौवनेन। 1/32 पार्वतीजी का शरीर भी नया यौवन पाकर बहुत ही खिल उठा। एतावता नन्वमुमेयशोभि काञ्चीगुणस्थानमनिन्दितायाः। 1/37 उन अत्यंत सुन्दर अगों वाली के नितम्ब कितने सुन्दर रहे होंगे।
मापि नीलालाक मध्य शोभि विस्रंसयन्ती नवकर्णिकारम्। 3/62 पार्वती जी ने भी सिर झुकाया, तो उनके काले-काले बालों में गुंथे हुए कर्णिकार के फूल गिर पड़े। परस्परेण स्पृहणीय शोभं न चेदिदं द्वन्द्वमयोजियिष्यत्। 7/66
सुन्दरता में एक दूसरे से बढ़े हुए इस जोड़े का यदि विवाह न होता। 3. काश :-[कास] चमकना, उज्जवल या सुन्दर दिखाई देना, प्रकट होना,
दिखाई देना। तया दुहित्रा सुतरां सवित्री फुरत्प्रभामण्डलया चकासे। 1/24 तेजोमण्डल से भरे मुख वाली उस कन्या को गोद में पाकर मेना भी खिल उठीं। सरिद् विहंगैरिव लीयमानैरामुच्य माना भरणाचकासे। 7/23 जैसे रंग बिरंगे पक्षियों के आ जाने से नदी सुहावनी लगने लगती है, वैसे ही मणियों, मोतियों और सोने के गहने पहना दिए जाने पर पार्वती जी की स्वाभाविक सुन्दरता भी निखर उठी। तासां च पश्चात् कनक प्रभाणां काली कपालाभरणा चकासे। 7/39 सोने के समान चमकने वाली उन माताओं के पीछे-पीछे उजले खप्परों से देह सजाए भद्रकाली जी आ रही थीं।
भुजंगाधिपति 1. भुजंगाधिपति :-[भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च+अधिपति]शेषनाग।
ततो भुजंगाधिपतेः फणाग्रैरधः कथं चिद्धृत भूमि भागः। 3/59 उनके बैठने की भूमि को शेष भगवान् बड़ी कठिनाई से अपने फणों पर संभाल
पाए। 2. शेष :-[शिष्+अच्] एक विख्यात नाग का नाम, शेषनाग।
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