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कालिदास पर्याय कोश उनके मुकुट पर सदा रहने वाला चन्द्रमा ही उनका चूड़ा मणि बन गया, इसलिए
वे दूसरा चूड़ामणि लेकर करते ही क्या। 2. रत्न :-[रमतेऽत्र, रम्+न, तन्तादेशः] मणि, आभूषण, हीरा।
अथोपयन्तारमलं समाधिना न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हितत्। 5/45 आप अपने लिए योग्य पति पाने के लिए तपस्या करती हों, तब भी तपस्या व्यर्थ है। क्योंकि मणि किसी को खोजने नहीं जाता, उल्टे मणि को ही लोग खोजते फिरते हैं। शरीर मात्रं विकृति प्रपेदे तथैव तस्थुः फणरत्लशोभाः। 7/34 उनका शरीर तो विकृत हुआ, पर उनके फणों पर जो मणि थे, वे ज्यों के त्यों चमकते रह गए। तत्रेश्वरो विष्टरभाग्यथावत्सरत्नमयं मधुमच्च गव्यम्। 7/42 वहाँ आसन पर महादेव जी को बैठाकर हिमालय ने रत्न, अर्ध्य, मधु, दही दिए।
मधु
1. मधु :-[मन्यते इति मधु, न्+उ नस्य धः] मधुर, सुखद, शहद, वसन्त ऋतु।
तव प्रसादात्कुममायुधोऽपि सहायमेकं मधुमेवलब्ध्वा । 3/10 आपकी कृपा हो तो मैं केवल वसन्त को अपने साथ लेकर अपने फूल के बाणों से ही। लग्न द्विरेफाञ्जन भक्ति चित्रं मुखे मधु श्री स्तिलकं प्रकाशय। 3/30 मानो वसन्त की शोभा रूपी स्त्री ने भौंरे रूपी आँजन से अपना मुँह चीतकर,
अपने माथे पर तिलक के फूल का तिलक लगाकर। 2. माधव :-[मधु+अण, विष्णुपक्षे माया लक्ष्म्याः धवः, ष०त०] वसन्त।
स माधवेनाभिमतेन सख्या रत्या च साशङ्कमनुप्रयातः। 3/23 फिर वह वसन्त को साथ लेकर उधर चल दिया, इनके पीछे-पीछे बेचारी रति
मन में डरती चली जा रही थी, कि आज न जाने क्या होने वाला है। 3. वसन्त :-[वस्+झच्] वसंत ऋतु, वसंत।
सद्यो वसन्तेन समागतानां नख क्षतानीव वनस्थलीनाम्। 3/29 मानो वसन्त ने वनस्थलियों के साथ विहार करके उन पर अपने नखों के नये चिह्न बना दिए हों। इति चैनमुवाच दुःखिता सुहृदः पथ्य वसन्त किं स्थितम्। 4/27
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