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कालिदास पर्याय कोश
सा दृष्ट इत्याननभुन्नमय्य ह्रीसन्नकण्ठीकथमप्युवाच। 7/85 तब पार्वतीजी ने ऊपर मुँह उठाते हुए बहुत लजाते हुए किसी प्रकार इतना
कहा-हाँ देख लिया। 3. वद् :-कहना, बोलना, उच्चारण करना।
कस्यार्थ धर्मों वदपीडयामि सिन्धोस्तटावोधइवप्रवृद्धाः। 3/6 जो उसका धर्म और अर्थ दोनों उसी प्रकार नाश कर देगा, जैसे बरसात में बढ़ी हुई नदी का बहाव दोनों तटों को बहा ले जाता है। वद प्रदोषे स्फुटचन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/4 आप यह तो बताइए भला बढ़ती हुई रात की सजावट खिले हुए चन्द्रमा और
तारों से होती है या सबेरे के सूर्य की लाली से। 4. शंस :-कहना, बयान करना, घोषणा करना।
जितेन्द्रिये शूलिनि पुष्पचापः स्वकार्य सिद्धिं पुनराशशंस। 3/57 तब उसके मन में जितेन्द्रिय महादेवजी को वश में करने की आशा फिर हरी हो उठी। तस्मै शशंस प्राणिपत्य नन्दी शुश्रूषयाशैल सुतामुपेताम्। 3/60 उनकी समाधि खुली देखकर नन्दी ने जाकर उन्हें प्रणाम करके कहा कि आपकी सेवा करने के लिए पार्वती जी आई हुई हैं। विमानभंगारण्यवगाहमानः शशंस सेवा वसरं सुरेभ्यः। 7/40 देवताओं के विमानो की छतरियों में गूंजकर यह सूचना दी कि अब सबको अपने-अपने काम में जुट जाना चाहिए।
देव
1. देव :-[वि॰] [दिव+अच्] देव, देवता, वर्षा का देवता, राजा, दिव्यपुरुष।
अमीहि वीर्य प्रभवं भवस्य जयाय सेनान्य मुशन्ति देवाः। 3/15 ये देवता लोग चाहते हैं कि शत्रु को जीतने के लिए शिवजी के वीर्य से हमारा सेनापति उत्पन्न हो। तद्गच्छ सिद्धयै कुरु देवकार्य मर्थोऽयमर्थान्तर भाव्य एव। 3/18 इसलिए तुम जाओ और देवताओं का यह काम कर डालो क्योंकि इस काम में बस एक कारण भर चाहिए था।
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