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कालिदास पर्याय कोश
3. वनस्पति :-[वनस्य पतिः, नि० सुट्] वृक्ष, पेड़।
तमाशु विघ्नं तपसस्तपस्वी वनस्पतिं वज्रइवावभज्य। 3/74 जैसे बिजली किसी पेड़ पर गिरकर उसे तोड़ डालती है, उसी प्रकार अपनी
तपस्या में डालने वाले कामदेव को जलाकर।। 4. विटप :-[विटं विस्तारं वा पाति पिबति-पा+क] शाखा, झाड़ी, वृक्ष।
पत्र कल्पदुमैरैव विलोलविटपांशकैः। 6/41 कल्पवृक्ष की चंचल शाखाएँ ही उस नगर की झंडियाँ थीं। स्थानमाह्निकमपास्य दन्तिन: सल्लकी विटपभंगवासितम्। 8/33 सलई के वृक्षों के टूटने से जहाँ गन्ध फैल गई है और जहाँ हाथी दिन में रहा
करते थे, उन स्थानों को अगले दिन के लिए छोड़-छोड़कर। 5. वृक्ष :-[वश्च्+क्स्] पेड़।
विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेतुमसांप्रतम्। 2/55 अपने हाथ से लगाए हुए विष के पेड़ को भी अपने ही हाथ से काटना ठीक नहीं होता। निष्कम्प वृक्षं निभृत द्विरेफं मूकाण्डजं शान्तमृगप्रचारम्। 3/42 वृक्षों ने हिलना बन्द कर दिया, भौरों ने गूंजना बन्द कर दिया, सब जीव-जन्तु चुप हो गए और पशु भी जहाँ के तहाँ खड़े रह गए। अतन्द्रिता सा स्वयमेव वृक्षकान्घटस्तन प्रस्त्रवणैर्व्यवर्धयत्। 5/14 आलस छोड़कर उन्होंने वहाँ के जिन छोटे-छोटे पौधों को अपने स्तनों के जैसे घड़ों के जल से सींच-सींचकर पाला था। बभूव तस्याः किल पारणाविधिर्न वृक्ष वृत्तिव्यतिरिक्त साधनः। 5/22 बस यह समझ लीजिए कि उन दिनों पार्वतीजी का खाना-पीना वही था, जो वृक्षों का होता है। एष वृक्ष शिखरे कृतास्पदो जातरूपरसगौरमण्डलमृ। 8/36 सामने पेड़ की शाखा पर बैठे हुए चन्द्रिकाओं को देखने से ऐसे लगता है। आविशद्भिटजांगण मृगैर्मूलसेकसरसैश्च वृक्षकैः। 8/38 पर्णकुटियों के आँगन में आते हुए हिरणों से, सींचे हुए जड़ वाले हरे-भरे पौधों से।
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