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कालिदास पर्याय कोश
जिसे सदा अपने आगे देखते रहने पर भी आँखें अघाती नहीं थीं, वह प्यारा सदा के लिए आँखों से ओझल हो गया।
ज्यां
1. ज्यां :-[ज्या+अ+टाप्] धनुष की डोरी।
उमासमक्षं हरबद्धलक्ष्यः शरासनज्यां मुहुराममर्श । 3/64 बस वह पार्वती जी के आगे बैठे हुए शिवजी पर ताक-तक कर धनुष की डोरी
खींचने ही लगा। 2. मौर्वी :-[मूर्वाया विकारः अण्+ङीप्] धनुष की डोरी।
न्यासीकृतां स्थानविदा स्मरेण मौर्वी द्वितीया मिव कार्मुकस्य। 3/55 मानो कहाँ क्या पहनना चाहिए, इस बात को जानने वाले कामदेव ने अपने हाथ से उनकी कमर में अपने धनुष की दूसरी डोरी पहना दी हो।
तट
1. तट :-[तट्+अच्] किनारा, कूल, उतार, ढाल।
अभ्यस्यनित तटाघातं निर्जितैरावता गजाः। 2/50 आज ऐरावत को भी हरा देने वाले उसके हाथी अपना टीला ढाहने का खिलवाड़ किया करते हैं। 2. तीर :-[ती+अच्] तट, किनारा, नदीतीर, सागर-तीर।
आप्लुतास्तीरमन्दारकुसुमोत्किरवीचिषु। 6/5 जो अपने तीर पर गिरे हुए कल्पवृक्ष के फूलों को अपनी लहरों पर उछालती चलती है।
तडित् 1. तडित् :- [स्त्री०] [ताडयति अभ्रम्-तड्-इति] बिजली।
शशिना सह याति कौमुदी सह मेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33
चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। 2. विद्युत :-[स्त्री॰] [विशेषेण द्योतते-विद्युत+क्विप्] बिजली।
चक्षुरुन्मिषति सस्मितं प्रिये विद्युताहतमिवन्यमीलयत्। 8/3
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