SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 618 कालिदास पर्याय कोश जिसे सदा अपने आगे देखते रहने पर भी आँखें अघाती नहीं थीं, वह प्यारा सदा के लिए आँखों से ओझल हो गया। ज्यां 1. ज्यां :-[ज्या+अ+टाप्] धनुष की डोरी। उमासमक्षं हरबद्धलक्ष्यः शरासनज्यां मुहुराममर्श । 3/64 बस वह पार्वती जी के आगे बैठे हुए शिवजी पर ताक-तक कर धनुष की डोरी खींचने ही लगा। 2. मौर्वी :-[मूर्वाया विकारः अण्+ङीप्] धनुष की डोरी। न्यासीकृतां स्थानविदा स्मरेण मौर्वी द्वितीया मिव कार्मुकस्य। 3/55 मानो कहाँ क्या पहनना चाहिए, इस बात को जानने वाले कामदेव ने अपने हाथ से उनकी कमर में अपने धनुष की दूसरी डोरी पहना दी हो। तट 1. तट :-[तट्+अच्] किनारा, कूल, उतार, ढाल। अभ्यस्यनित तटाघातं निर्जितैरावता गजाः। 2/50 आज ऐरावत को भी हरा देने वाले उसके हाथी अपना टीला ढाहने का खिलवाड़ किया करते हैं। 2. तीर :-[ती+अच्] तट, किनारा, नदीतीर, सागर-तीर। आप्लुतास्तीरमन्दारकुसुमोत्किरवीचिषु। 6/5 जो अपने तीर पर गिरे हुए कल्पवृक्ष के फूलों को अपनी लहरों पर उछालती चलती है। तडित् 1. तडित् :- [स्त्री०] [ताडयति अभ्रम्-तड्-इति] बिजली। शशिना सह याति कौमुदी सह मेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33 चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। 2. विद्युत :-[स्त्री॰] [विशेषेण द्योतते-विद्युत+क्विप्] बिजली। चक्षुरुन्मिषति सस्मितं प्रिये विद्युताहतमिवन्यमीलयत्। 8/3 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy