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कुमारसंभव
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गंगा और यमुना भी अपना नदी का रूप छोड़कर महादेवजी पर चँवर डुलाने
लगीं। 2. जाह्नवी :-[जहनु+अण्+ङीप्] गंगा नदी का विशेषण।
सागरादनपगा हि जाह्नवी सोऽपि तन्मुखरसैकवृत्तिभाक्। 8/16 जैसे गंगा जी, समुद्र के पास जाकर और मिलकर वहाँ से लौटने का नाम तक नहीं लेती और समुद्र भी उन्हीं के मुख का जल ले लेकर उनसे प्रेम किया करता
तत्र हंस धवलोतरच्छदं जाह्नवी पुलिन चारुदर्शनम्। 8/82
वहाँ हंस के समान उजली....और गंगाजी के समान मनोहर दिखाई देने वाले। 3. त्रिमार्ग :-गंगा।
प्रभामहत्या शिखयेव दीपस्त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः। 1/2 जैसे अत्यंत प्रकाशमान लौ को पाकर दीपक, मन्दाकिनी को पाकर स्वर्ग का
मार्ग। 4. त्रिस्रोतस :-गंगा का विशेषण।
सा चक्रवाकाङ्कितसैकतायास्त्रिस्रोतसः कान्तिमतीत्यतस्थौ। 7/1 उस समय पार्वती जी इतनी सुन्दर लग रही थीं कि उनके रूप के आगे उजली धारा वाली उन गंगाजी की शोभा फीकी पड़ गई, जिसके तीर पर की बालू में
चकवे बैठे हों। 5. भागीरथी :-[भगीरथ+अण+ङीप्] गंगा नदी।
भागीरथी निर्झर सीकराणां वोढा मुहः कम्पितदेवदारुः।। 1/15 गंगाजी के झरनों की फुहारों से लदा हुआ, बार-बार देवदारु के वृक्ष को कंपाने वाला। मन्दाकिनी :-[मन्दमकति-अक्+णिनि+ङीष्] गंगा नदी। मन्दाकिनी सैकतवेदिकाभिः सा कन्दुकैः कृत्रिम पुत्रैकश्च। 1/29 कभी तो गंगाजी के बलुए तट पर वेदियाँ बनाती थीं, कभी गेंद खेलती थीं और कभी गुड़ियाँ बना-बनाकर सजाती थीं। मन्दाकिन्याः पयः शेषं दिग्वारण मदाविलम्। 2/44 मन्दाकिनी में आज कल केवल दिग्गजों के मद से गंदला जल भर दिखाई दिया करता है।
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