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कुमारसंभव
का प्रारम्भ किया है, पर आपका कभी प्रारम्भ नहीं हुआ। आप संसार के स्वामी हैं, पर आपका कोई स्वामी नहीं है। अमुना ननु पार्श्ववर्तिना जगदाज्ञा ससुरासुरं तव। 4/29 तुम्हारे इस साथी वसन्त के ही कारण तो, ये सब देवता और राक्षस तुम्हारा लोहा मानते थे। मातरं कल्पयन्त्वेनामीशो हि जगतः पिता। 6/80
महादेव जी संसार के पिता हैं, इसलिए ये भी सबकी माता बन जायेंगी। 2. भुवन :-[भवत्यत्र, भू-आधारादौ-क्युन्] लोक, पृथ्वी।
इत्थ माराध्यमानोऽपि क्लिश्नाति भुवनत्रयम्। 2/40 इतनी सेवा करने पर भी वह असुर तीनों भुवनों को पीड़ा देता जा रहा है। भुवनालोकन प्रीतिः स्वर्गिभिर्नानुभूयते। 2/45 पहले देवता लोग विमानों पर चढ़कर इस लोक से उस लोक में घूमते-फिरते
थे। 3. लोक :-[लोक्यतेऽसौ, लोक+घञ्] दुनिया, संसार, भूलोक, पृथ्वी।
मयि सृष्टिर्हिलोकानां रक्षा युष्मास्ववस्थिता। 2/28 हमारा काम तो केवल संसार की सृष्टि करना भर है, उसकी रक्षा करना तो आप ही लोगों के हाथ में है। उपप्लवाय लोकानां धूमकेतु रिवोत्थितः । 2/32 जैसे संसार का नाश करने के लिए पुछल्ला [धूमकेतु] तारा निकल आया हो। वरेण शमितं लोकानलं दग्धुं हि तत्तपः। 2/56 यदि मैं उसे न देता, तो उसकी तपस्या से सारा संसार जल उठता। आज्ञापय ज्ञात विशेष पुंसां लोकेषु यत्ते करणीयमस्ति। 3/3 आप आज्ञा दीजिए, तीनों लोकों में ऐसा कौन सा काम है, जो आप मुझसे कराना चाहते हैं। प्रसन्न चेतः सलिलः शिवोऽभूत्संसृज्यमानः शरदेव लोकः। 7/74 जैसे शरद के आने पर लोग प्रसन्न हो जाते हैं, वैसे ही शंकर जी का मन जल के समान निर्मल हो गया। लोक एष तिमिरौधवेष्टितो गर्भवास इव वर्तते निशि। 3/56
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