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कालिदास पर्याय कोश
2. त्वच् :- [स्त्री०] [त्वच्+क्विप्] छाल, वल्कल, खाल।
न्यस्ताक्षरा धातुरसेन यत्र भूर्जत्वचः कुञ्जर बिन्दुशोणाः। 1/7 इस पर्वत पर उत्पन्न होने वाले भोज पत्रों पर लिखे हुए अक्षर, हाथी की सूंड पर बनी हुई लाल बुंदकियों जैसे दिखाई पड़ते हैं। कृताभिषेका हुतजातवेदसं त्वगुत्तरासङ्गवती मधीतिनीम्। 5/16 जब वे स्नान करके, हवन करके, वल्कल की ओढ़नी ओढ़कर बैठी पाठ-पूजा किया करती थीं, उस समय उन्हें देखने के लिए दूर-दूर से बड़े-बड़े ऋषि मुनि
उनके पास आया करते थे। 3. वल्कलं :-[वल्+कलच्, कस्य नेत्वम्] वल्कल, छाल, सेवनी, पोशाक।
बबन्ध बालारुण बभ्रु वल्कलं पयोधरोत्सेधविशीर्ण संहति। 5/8 जिसके सदा हिलते रहने से उनकी छाती पर का .. । उसके स्थान पर उन्होंने प्रात:काल के सूर्य के समान लाल-लाल वल्कल लपेट लिया। किमित्यपास्य भरणानि यौवने धृतं त्वया वार्धकशोभि वल्कलम्। 5/44 इस भरी जवानी में आपने सुन्दर गहने छोड़कर, ये बुढ़ियों वाले वल्कल क्यों पहन लिए हैं। इतो गमिष्याम्यथवेति वादिनिचचाल वालास्तनभिन्नवल्कला। 5/84 या तो मैं ही यहाँ से उठकर चली जाती हूँ। यह कहकर वे उठीं, इस हडड़बड़ी में उनके स्तन पर पड़ा हुआ वल्कल फट गया और ज्यों ही उन्होंने पैर बढ़ाया। मुक्ता यज्ञोपवीतानि बिभ्रतो हैम वल्कलाः। 6/6 जिनके कंधों पर मोती के यज्ञोपवीत लटक रहे थे, पीठ पर सोने के वल्कल पड़े हुए थे।
जगत् 1. जगत् :-[गम्+क्विप् नि० द्वित्वं तुगागमः] हिलने-डुलने वाला, जंगम् संसार,
वायु, हवा। जगद्योनिरयोनमस्त्वं जगदन्तो निरन्तकः। जगदादिरनादिस्त्वं जगदीशो निरीश्वरः।। 2/9 संसार को आपने उत्पन्न किया है, पर आपको किसी ने उत्पन्न नहीं किया। आप संसार का अंत करते हैं, पर आपका कोई अन्त नहीं कर सकता। आपने संसार
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