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कुमारसंभव
प्रायः ऐसा होता है कि स्वामी को अपने सेवकों से जब जैसा काम निकालना होता है, उसी के अनुसार वे उनका आदर भी किया करते हैं। भवन्ति साम्येऽपि निविष्टचेतसां वपुर्विशेषेश्वति गौरवाः क्रियाः । 5/3 क्योंकि जिन्होंने अपने मन को साध लिया है, वे यदि अपनी बराबर की अवस्था वाले तेजस्वी पुरुष से भी मिलते हैं, तो बड़े आदर से मिलते हैं। तद्गौरवान्मङ्गल मण्डनश्रीः सा पश्पृशे केवलमीश्वरेणः । 7/31 शंकरजी ने माताओं का आदर करने के लिए वे सब मंगल - शृंगार की सामग्रियाँ छू भर दीं।
2. प्रभाव :- [प्र+भू+घञ्] गरिमा, यश, महिमा, तेज ।
स्वागतं स्वानधीकारान्प्रभावैरवलम्ब्य वः । 2/18
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एक साथ मिलकर आए हुए, अपनी शक्ति से अपने-अपने अधिकारों की रक्षा करने वाले देवताओं ! आप लोगों का स्वागत करता हूँ।
इत्युद्भुतैकप्रभवः प्रभावात्प्रसिद्ध नेपथ्य विधेर्विधाता । 7/36
अपनी शक्ति से संसार के सभी सिंगार को बनाने वाले और सदा ही अनोखा काम करने वाले महादेवजी ।
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3. महिमा : - [ पुं०] [ महत् + : इमनिन्य टिलोपः ] यश, गौरव, प्रतिष्ठा । तिसृभिस्त्वमवस्थाभिर्महिमानमुदीरयन्। 2/6
आप ही शिव, विष्णु और हिरण्यगर्भ इन तीन रूपों में प्रतिष्ठित हैं। तिर्यगूर्ध्वमधस्ताच्च व्यापको महिमा हरेः । 6/71
भगवान् विष्णु की महिमा संसार में तब फैली, जब उन्होंने ऊपर नीचे और तिरछे पैर रखकर तीनों लोकों को माप डाला ।
पूर्वं महिम्ना स हि तस्य दूरमावर्जितं नात्मशिरोविवेद | 7/54
पर उसे यह नहीं पता चला, कि प्रणाम करने के पहले ही उनकी महिमा से ही उसका सिर झुक चुका था।
ग्रह
1. ग्रह :- • पकड़ना, लेना, ग्रहण करना ।
नवे दुकूले च नगोपनीतं प्रत्यग्रहीत्सर्वममन्त्रवर्जम् । 7 / 72
नए वस्त्र और जो कुछ लाकर दिए, वे सब उन्होंने मंत्र के साथ ले लिए।
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