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कालिदास पर्याय कोश विशोषितां भानुमतो मयूखैर्मन्दाकिनी पुष्कर बीज मालाम्।। 3/65 धूप में सुखाई हुए मन्दाकिनी के कमल के बीजों की माला।
गम
1. गम् :-जाना, चलना-फिरना, विदा होना, चले जाना, दूर जाना।
तत्र निश्चित्य कंदर्पमगमत्पाक शासनः। 2/63 इन्द्र ने भली-भाँति सोच-विचारकर कामदेव को स्मरण किया। गणाश्च गियलियमभ्यगच्छन्प्रशस्तमारम्भ मिवोत्तमार्थाः। 7/71 महादेवजी के सभी गण हिमालय के घर में उसी प्रकार बैठे जैसे किसी काम के ठीक-ठीक प्रारंभ हो जाने पर उसके पीछे और भी बहुत से बड़े-बड़े काम सध
जाते हैं। 2. पद :-[प्रप] जाना, हिलना, डुलना, चलना-फिरना, पास जाना, पहुँचना।
क्षुद्रेऽपि नूनं शरणं प्रपन्ने ममत्वमुच्चैः शिरसां सतीव। 1/12 वे अपनी शरण में आए हुए नीच लोगों से भी वैसा ही अपनापन बनाए रहते हैं, जैसा सज्जनों के साथ। कामस्य पुष्प व्यतिरिक्तमस्त्रं बाल्यात्परं साथ वयः प्रपेदे। 1/31 इस प्रकार धीरे-धीरे उनका बचपन बीत गया और उनके शरीर में वह यौवन फूट पड़ा, जो कामदेव का बिना फूलों वाला बाण है। तदा सहास्माभिरनुज्ञया गुरोरियं प्रपन्ना तपसे तपोवनम्। 5/59 ये अपनी माता की आज्ञा लेकर हम लोगों के साथ तप करने के लिए यहाँ तपोवन में चली आईं। प्रस्थ :-[प्र+स्था+क्] जाना, चलना। आसेदशेषधिप्रस्थं मनसा समरंहसः। 6/36 मन के समान वेग से चलने वाले ऋषि औषधिप्रस्थ नगर में पहुँच गए। इत्योषधिप्रस्थ विलासिनीनां शृण्वन्कथाः श्रोत्रसुखास्त्रिनेत्रः। 7/69 औषधिप्रस्थ की स्त्रियों की ऐसी मीठी-मीठी बातें सुनते हुए, महादेव जी।
गिरा
1. गिरा :-[गि+क्विप्+टाप्] वाणी, बोलना, भाषा, आवाज।
कर्मयज्ञः फलं स्वर्गस्तासां त्वं प्रभवो गिराम्। 2/12
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