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कुमारसंभव
तपात्ययेवारिभिरुक्षिता नवैर्भुवा सहोष्माणम मुंच दूर्ध्वगम्। 5/23 वर्षा होने पर उधर तो गर्मी से तपी हुई पृथ्वी से भाप निकल उठी! आसक्तबाहुलतया सार्ध मुद्धृतया भुवा। 6/8 उबारी हुई पृथ्वी के साथ-साथ उनके जबड़ों मे विश्राम किया करते हैं। उन्नतेन स्थितिमिता धुरमुद्वहता भुवः। 6/30
फिर ऐसी ऊँची प्रतिष्ठा वाले और पृथ्वी को धारण करने वाले। 5. भूमि :-[भवन्त्यस्मिन् भूतानि-भू+मि किच्च वा ङीप्] पृथ्वी, मिट्टी,भूमि। विदूर भूमिर्नवमेघशब्दादुद्भिन्नया रत्न शलाक येव। 1/24 जैसे नये मेघ के गरजने पर विदूर पर्वत के रत्नों में अंकुर फूट आते हैं और उनके प्रकाश से विदूर पर्वत की भूमि चमक उठती है। स वासवेना सनसनिकृष्टमितो निषीदेति विसृष्ट भूमिः। 3/2 इन्द्र ने कामदेव से कहा-आओ यहाँ बैठो। यह कहकर उसे अपने पास ही बैठा लिया, उसने भी सिर झुकाकर। योषित्सु तद्वीर्य निषेक भूमिः सैव क्षमेत्यात्म भुवोपदिष्टम्। 3/16 ब्रह्माजी ने स्वयं यह बात बताई है कि स्त्रियों में वे ही एक ऐसी हैं, जो शिवजी का वीर्य धारण कर सकती हैं। भविष्यतः पत्युरुमाच शंभोः समाससाद प्रतिहारभूमिम्। 3/58 इसी बीच पार्वती भी अपने भावी पति शंकर जी के आश्रम के द्वार पर आ पहुँची। भूमेर्दिवमिवारूढं मन्ये भवदनुग्रहात्। 6/55 पृथ्वी पर रहते हुए भी स्वर्ग पर चढ़ गया हूँ। स्वबाणचिह्नादवतीर्य मार्गदासन्नभूपृष्ठामियाय देवः। 7/51 उस आकाश से पृथ्वी पर उतरे, जिसमें उन्होंने अपने बहुत से बाण चलाकर
चिह्न बना दिए थे। 6. वसुधा :-[वसस्+उन्+धा] पृथ्वी, भूमि।
अथ सा पुनरेव विह्वला वसुधालिंगन धूसरस्तनी। 4/4 रति बेहाल हो उठी और मिट्टी में लोट-लोटकर रोने लगी। निर्वृत्त पर्जन्य जलाभिषेका प्रफुल्लाकाशा वसुधेवे रेजे। 7/11 मानो गरजते हुए बादलों के जल से धुली हुई और कांस के फूलों से भरी हुई धरती शोभा दे रही हो।
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