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कालिदास पर्याय कोश
बतलाइए भला बढ़ती हुई रात की सजावट खिले हुए चन्द्रमा और तारों से होती है या सबेरे के सूर्य की लाली से ।
10. शार्वर :- [ शर्वरी+अण्] रात्रिकालीन, रात ।
नून मुन्नमति यज्वनां पतिः शार्वरस्य तमसो निषिद्धये । 8 /58
इससे यह निश्चय जान पड़ रहा है कि रात का अँधेरा दूर करने के लिए चन्द्रमा निकले चले आ रहे हों ।
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क्षिति
1. क्षिति : [ क्षि+ क्तिन् ] पृथ्वी, निवास, आवास ।
मूर्धान मालि क्षिति धारणोच्चमुच्चैस्तरं वक्ष्यति शैलराजः । 7/68 पृथ्वी धारण करने से उनका सिर वैसे ही ऊँचा था, उस पर शंकर जी से सम्बन्ध करके से उनका सिर वैसे ही ऊँचा हो जाएगा ।
क्षितिविरचितशय्यं कौतुकागारमागात्। 9/94
उस शयन घर में पहुँचे जहाँ सजी हुई सेज बिछी हुई थी ।
2. पृथ्वी : - [ पृथ्+षिंवन्, संप्रसारणम् ] पृथ्वी, पृथिवी ।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः । 1/1 वह पूर्व और पश्चिम के समुद्रों तक फैला हुआ ऐसा लगता है, मानो वह पृथ्वी को नापने तौलने का माप दण्ड हो ।
आजहतुस्तच्चरणै पृथिव्यां स्थलारविन्द श्रियमव्यवस्थाम् । 1 / 33
जब वे अपने इन चरणों को उठा-उठाकर रखती चलती थीं, तब तो ऐसा जान पड़ता था, मानो वे पग-पग पर स्थल कमल उगाती चल रही हों। 3. धरित्री : - [ धृ + इ + ङीष् ] पृथ्वी, भूमि, मिट्टी |
भास्वन्ति रत्नानि महौषधीश्च पृथूपदिष्टां दुदुहुर्धरित्रीम् । 1/2
राजा पृथु के कहने पर पृथ्वी रूपी गौ से सब चमकीले रत्न और जड़ी-बूटियाँ दूहकर निकाल लीं।
यज्ञाङ्गयोनित्वमवेक्ष्य यस्य सारंधरित्रीधरणक्षमं च । 1/17
यज्ञ में काम आने वाली सामग्रियों को उत्पन्न करने के कारण और पृथ्वी को संभाले रखने की शक्ति होने के कारण ।
4. भुव:- [ भवत्यत्र, भू-आधारादौ - क्युन् ] पृथ्वी, स्वर्ग ।
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