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कालिदास पर्याय कोश शशिन इव दिवा तनस्य लेखा किरण परिक्षत धूसरा प्रदोषम। 4/42 जैसे दिन में दिखाई देने वाले, निस्तेज चन्द्रमा की किरण साँझ होने की बाट जोहती है। मैत्रे मूहूर्ते शशलाञ्छनेन योगं गतासूत्तरफल्गुनीषु। 7/6 सूर्य निकलने के तीन मुहूर्त पीछे उत्तरा फल्गुनी नक्षत्र में। लग्नद्विरेफं परिभूय पद्मं समेघलेखं शशिनश्च बिम्बम्। 7/15 भौरों से घिरा हुआ कमल और बादल के टुकड़ों में लिपटा हुआ चन्द्रमा। उन्नतेषु शशिनः प्रभास्थिता निम्नसंश्रय परं निशातमः। 8/66 पर्वत की चोटियों पर तो चाँदनी फैल गई हैं, पर घाटियों और खड्डों में अभी अँधेरा बना हुआ है। हारयष्टि रचना मिवांशुभिः कर्तुमागतकुतूहल: शशी। 8/68
मानो चन्द्रमा अपनी किरणों से कल्पवृक्षों में चन्द्रहार बनाने आ पहुँचा हो। 10. सोम :- [सू+मन्] चन्द्रमा।
सत्यमर्काच्च सोमाच्च परमध्यास्महे पदम्। 6/19
यद्यपि हम लोग सूर्य और चन्द्रमा दोनों से यों ही ऊपर रहते हैं। 11. हिमांशु :-चन्द्रमा।
विप्रकृष्ट विवरं हिमांशुना चक्रवाक मिथुनं विडम्ब्यते। 8/61 इस समय आकाश का चन्द्रमा और ताल के पानी में पड़ी हुई चन्द्रमा की परछाईं दोनों ऐसे लगते हैं, मानो रात होने से चकवी-चकवे का जोड़ा दूर-दूर जा पड़ा
हो।
कनक
1. कनक :-[कन्+कुन्] सोना।
तासां च पश्चात्कनकप्रमाणां कालीकपालभरणा चकासे। 7/39 सोने के समान चमकने वाली उन माताओं के पीछे-पीछे उजले खप्परों से देह
सजाए हुए भद्रकाली जी आ रहीं थीं। 2. काञ्चन :-[काञ्च+ल्युट्] सनुहरा, सोने का बना हुआ।
ध्रुव वपुः काञ्चन पद्मनिर्मितं मृदु प्रकृत्या च ससारमेव। 5/19 मानो उनका शरीर सोने के कमलों से बना था, जो कमल से बना होने के कारण
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