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कुमारसंभव 2. पाणि :-[पण्+इण्] हाथ।
उत्तान पाणि द्वयसन्निवेशात्प्रफुल्लराजीवमिवाङ्कमध्ये। 3/45 अपने दोनों कन्धे झुकाकर अपनी गोद में कमल के समान, दोनों हथेलियों को ऊपर किए बिना हिले-डुले बैठे हैं। वृत्तिस्तयोः पाणि समागमेन समं विभक्तेव मनोभवस्य। 7/77 ऐसा जान पड़ा, मानो उन दोनों का हाथ मिलाकर कामदेव ने दोनों को एक साथ
अपने वश में कर लिया हो। 3. भुज :- [भुज+क] भुजा।
स गोपतिं नन्दि भुजावलम्बी शार्दूल चर्मान्तरितोरुपृष्ठम्। 7/37 फिर नन्दी के हाथ का सहारा लेकर वे अपने उस लम्बे-चौड़े डील-डौल वाले
बैल की पीठ पर चढ़े, जिस पर सिंह की खाल बिछी हुई थी। 4. हस्त :-[हस्+तन्, न इट्] हाथ।
ऐरावतास्फालनकर्कशेन हस्तेन पस्पर्श तदङ्ग मिन्द्रः। 3/22 इन्द्र ने उसकी पीठ पर अपना वह हाथ फेरकर उसे उत्साहित किया, जो ऐरावत को अंकुश लगाते-लगाते कड़ा पड़ गया था। नालक्षयत्साहवसन्नहस्तः स्त्रसतं शरंचापमपि स्वहस्तात्। 3/51 कामदेव के हाथ डर के मारे ऐसे ढीले पड़ गए, कि वह यह भी न जान सका कि मेरे हाथ से धनुष बाण छूटकर कब गिर गए। इति स्वहस्तोल्लिखितश्चमुग्धया रहस्युपालभ्यत चन्द्रशेखरः। 5/58 ये अपने हाथ से बनाए हुए शंकरजी के चित्र को ही सच्चे शंकर जी समझकर, उन्हें यह कह-कहकर उलाहना देने लगती थीं। धात्र्यङ्गुलीभिः प्रति सार्यमाणमूर्णामयं कौतुक हस्तसूत्रम्। 7/28 पार्वतीजी के हाथ में जहाँ कंगना बाँधना था वहाँ न बाँधकर कहीं और बाँध दिया, पर उनकी धाय ने अपनी उँगलियों से खिसकाकर उनके कंगन को ठीक स्थान पर पहुँचा दिया। तत्रावतीर्यच्युत दत्त हस्तः शरद्धनाद्दीधितिमानिवोक्ष्णः। 7/70 वहाँ पहुँचने पर विष्णुजी ने हाथ का सहारा लेकर महादेवजी को इस प्रकार बैल से उतार लिया, मानो शरद के उजले बादलों से सूर्य को उतार लिया हो।
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