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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 583 कुमारसंभव 2. पाणि :-[पण्+इण्] हाथ। उत्तान पाणि द्वयसन्निवेशात्प्रफुल्लराजीवमिवाङ्कमध्ये। 3/45 अपने दोनों कन्धे झुकाकर अपनी गोद में कमल के समान, दोनों हथेलियों को ऊपर किए बिना हिले-डुले बैठे हैं। वृत्तिस्तयोः पाणि समागमेन समं विभक्तेव मनोभवस्य। 7/77 ऐसा जान पड़ा, मानो उन दोनों का हाथ मिलाकर कामदेव ने दोनों को एक साथ अपने वश में कर लिया हो। 3. भुज :- [भुज+क] भुजा। स गोपतिं नन्दि भुजावलम्बी शार्दूल चर्मान्तरितोरुपृष्ठम्। 7/37 फिर नन्दी के हाथ का सहारा लेकर वे अपने उस लम्बे-चौड़े डील-डौल वाले बैल की पीठ पर चढ़े, जिस पर सिंह की खाल बिछी हुई थी। 4. हस्त :-[हस्+तन्, न इट्] हाथ। ऐरावतास्फालनकर्कशेन हस्तेन पस्पर्श तदङ्ग मिन्द्रः। 3/22 इन्द्र ने उसकी पीठ पर अपना वह हाथ फेरकर उसे उत्साहित किया, जो ऐरावत को अंकुश लगाते-लगाते कड़ा पड़ गया था। नालक्षयत्साहवसन्नहस्तः स्त्रसतं शरंचापमपि स्वहस्तात्। 3/51 कामदेव के हाथ डर के मारे ऐसे ढीले पड़ गए, कि वह यह भी न जान सका कि मेरे हाथ से धनुष बाण छूटकर कब गिर गए। इति स्वहस्तोल्लिखितश्चमुग्धया रहस्युपालभ्यत चन्द्रशेखरः। 5/58 ये अपने हाथ से बनाए हुए शंकरजी के चित्र को ही सच्चे शंकर जी समझकर, उन्हें यह कह-कहकर उलाहना देने लगती थीं। धात्र्यङ्गुलीभिः प्रति सार्यमाणमूर्णामयं कौतुक हस्तसूत्रम्। 7/28 पार्वतीजी के हाथ में जहाँ कंगना बाँधना था वहाँ न बाँधकर कहीं और बाँध दिया, पर उनकी धाय ने अपनी उँगलियों से खिसकाकर उनके कंगन को ठीक स्थान पर पहुँचा दिया। तत्रावतीर्यच्युत दत्त हस्तः शरद्धनाद्दीधितिमानिवोक्ष्णः। 7/70 वहाँ पहुँचने पर विष्णुजी ने हाथ का सहारा लेकर महादेवजी को इस प्रकार बैल से उतार लिया, मानो शरद के उजले बादलों से सूर्य को उतार लिया हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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