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कालिदास पर्याय कोश कपोल संसर्पि शिखः स तस्या मुहूर्त कर्णोत्पलतां प्रपेदे। 7/81 वह धुआँ उनके गालों के पास पहुँचकर कुछ क्षणों के लिए उनके कानों का
कर्णफूल बन जाता था। 2. गण्ड :-[गण्ड्+अच्] गाल।
तदीषदाारुणगण्डलेखमुच्छवासिकालाजनरागम्क्षणोः। 7/8 पार्वती जी के गाल कुछ लाल हो गए, मुँह पर पसीने की बूंदें छा गईं, आँखों का काला आँजन फैल गया।
कर 1. कर :-[करोति, कीर्यते अनेन इति, कृ +अप्] हाथ, हाथी।
कुचाङ्कुरादानपरिक्षताङ्गुलिः कृतोऽक्षसूत्रप्रणयी तयाकरः। 5/11 उन कोमल हाथों में उन्होंने रुद्राक्षों की माला ले ली और कुशा के अंकुवे उखाड़कर, अपने उन्हीं हाथों की उँगलियों में घाव कर लिए। अवस्तु निर्बन्ध परे कथं नुते करोऽयमामुक्त विवाह कौतुकः। करेण शंभोवलयीकृताहिना सहिष्यते तत्प्रथमावलम्बनम्।। 5/66 पार्वती जी! आप भी किस बेतुके से प्रेम करने चली हैं। बताइए तो, पाणि ग्रहण के समय विवाह के मंगल-सूत्र से सजा हुआ आपका यह हाथ, शंकरजी के साँप लिपटे हुए हाथ को कैसे छू पायेगा। तस्याः करं शैल गुरुपुनीतं जग्राह तामाङ्गुलिमष्टमूर्तिः। 7/76 तब हिमालय के पुरोहित ने पार्वती जी का हाथ आगे बढ़ाकर शंकर जी के हाथ पर रख दिया। क्षितिधर पति कन्या माददानः करेण। 7/94 शंकरजी पार्वतीजी का हाथ अपने हाथ में लेकर। नाभिदेशनिहितः सकम्पया शंकरस्य रुरुधे तयाकरः। 8/4 जब शंकरजी अपने हाथ उनकी नाभि की ओर बढ़ाते, तो पार्वती जी काँपते हुए उनका हाथ थाम लेती। शूलिनः करतलद्वयेन सा निरुध्य नयने हृतांशुका। 8/7 जब कभी अकेले में शिवजी इनके कपड़े खींचकर इन्हें उघाड़ देते, तो ये अपनी दोनों हथेलियों से शिवजी के दोनों नेत्र बन्द कर लेती।
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