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कुमारसंभव
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वहाँ के हाथी ऐसे लगते थे कि सिंह को भी पावें, तो पछाड़े दें और घोड़े तो सभी बिल जाति के थे। सिंह केसर सटासु भूभृतां पल्लव प्रसविषु दुमेषु च। 8/46 सिंहों के लाल लाल केसरों को, नए-नए पत्तों से लदे हुए वृक्षों को।
कोप
1. कोप :-[कुप्+घञ्] क्रोध, गुस्सा, रोष।
कयासि कामिन्सुरतापराधत्पादानतः कोपनयावधूतः। 3/8 हे कामी ऐसी कौन सी स्त्री है, जो आपका संभोग न पाने पर क्रोध करके आपसे इतनी रूठी बैठी है कि पैरों पर गिरकर मनाने पर भी अभी तक नहीं मानी है। बिभेतु मोघीकृत बाहुवीर्यः स्त्रीभ्योऽपि कोप स्फुरिताऽधराभ्यः। 3/9 मेरे बाणों की मार से ऐसा शक्ति हीन हो जाना चाहता है, कि क्रोध से काँपते हुए
ओठों वाली नारी तक उसे डरा दे। ददृशे पुरुषाकृति सितौ हरकोपानल भस्म केवलम्। 4/3 महादेवजी के कोप से जली हुई पुरुष के आकार की एक राख की ढेर सामने पृथ्वी पर पड़ी हुई है। यत्र कोपैः कृताः स्त्रीणामा प्रसादार्थिनः प्रियाः। 6/45 वहाँ की स्त्रियाँ अपने प्रेमियों को अवश्य डाँटती थी, जब तक वे प्रेमी आगे के लिए कान न पकड़ लें। 2. रोष :-[रुष्+घञ्] क्रोध, कोप, गुस्सा।।
येदेव पूर्व जनमे शरीरं सा दक्षरोषत्सुदती ससर्ज। 1/53 जब से सती ने अपने पिता दक्ष के हाथों महादेवजी का अपमान होने पर क्रोध करके यज्ञ की अग्नि से अपना शरीर छोड़ा था। न खलूग्ररुषा पिनाकिना गमितः सोऽपि सुहृदगतां गतिम्। 4/24 कहीं वह भी महादेव जी के तीखे क्रोध की आग में अपने मित्र के साथ-साथ भस्म तो नहीं हो गया। न नूनमारूढरुषा शरीरमनेन दग्धं कुसुमायुधस्य। 7/67 अब हमारी समझ में आ रहा है कि इन्होंने कामदेव को क्रोध करके भस्म नहीं किया है।
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