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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 597 वहाँ के हाथी ऐसे लगते थे कि सिंह को भी पावें, तो पछाड़े दें और घोड़े तो सभी बिल जाति के थे। सिंह केसर सटासु भूभृतां पल्लव प्रसविषु दुमेषु च। 8/46 सिंहों के लाल लाल केसरों को, नए-नए पत्तों से लदे हुए वृक्षों को। कोप 1. कोप :-[कुप्+घञ्] क्रोध, गुस्सा, रोष। कयासि कामिन्सुरतापराधत्पादानतः कोपनयावधूतः। 3/8 हे कामी ऐसी कौन सी स्त्री है, जो आपका संभोग न पाने पर क्रोध करके आपसे इतनी रूठी बैठी है कि पैरों पर गिरकर मनाने पर भी अभी तक नहीं मानी है। बिभेतु मोघीकृत बाहुवीर्यः स्त्रीभ्योऽपि कोप स्फुरिताऽधराभ्यः। 3/9 मेरे बाणों की मार से ऐसा शक्ति हीन हो जाना चाहता है, कि क्रोध से काँपते हुए ओठों वाली नारी तक उसे डरा दे। ददृशे पुरुषाकृति सितौ हरकोपानल भस्म केवलम्। 4/3 महादेवजी के कोप से जली हुई पुरुष के आकार की एक राख की ढेर सामने पृथ्वी पर पड़ी हुई है। यत्र कोपैः कृताः स्त्रीणामा प्रसादार्थिनः प्रियाः। 6/45 वहाँ की स्त्रियाँ अपने प्रेमियों को अवश्य डाँटती थी, जब तक वे प्रेमी आगे के लिए कान न पकड़ लें। 2. रोष :-[रुष्+घञ्] क्रोध, कोप, गुस्सा।। येदेव पूर्व जनमे शरीरं सा दक्षरोषत्सुदती ससर्ज। 1/53 जब से सती ने अपने पिता दक्ष के हाथों महादेवजी का अपमान होने पर क्रोध करके यज्ञ की अग्नि से अपना शरीर छोड़ा था। न खलूग्ररुषा पिनाकिना गमितः सोऽपि सुहृदगतां गतिम्। 4/24 कहीं वह भी महादेव जी के तीखे क्रोध की आग में अपने मित्र के साथ-साथ भस्म तो नहीं हो गया। न नूनमारूढरुषा शरीरमनेन दग्धं कुसुमायुधस्य। 7/67 अब हमारी समझ में आ रहा है कि इन्होंने कामदेव को क्रोध करके भस्म नहीं किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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