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कालिदास पर्याय कोश 3. संरम्भ :-[सम्+र+घञ्, मुम्] क्रोध, रोष, कोप, डल्लड़।
सपदि मुकुलिताक्षीं रुद्रसंरम्भभीत्या। 3/76 महादेवजी के क्रोध से डरकर आँख बन्द करके जाती हुई।
कौमुदी 1. कौमुदी :-[कौमुदी+ङीप्] चाँदनी।
शशिना सहयाति कौमुदी सहमेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33 चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। कला च साकान्तिमती कलावतस्त्वमस्य लोकस्य चनेत्रकौमुदी। 5/71 एक तो चन्द्रमा की कला के, जो उनके माथे पर है और दूसरे आपके, जो संसार के नेत्रों को खिलाने वाली हैं। चन्द्रिका :-[चन्द्र+ठन्+टाप्] चाँदनी, ज्योत्स्ना। उन्नतावनत भाववत्तया चन्द्रिकासतिमिरा गिरेरियम्। 8/69 पहाड़ के ऊँचे नीचे होने से कहीं तो चाँदनी पड़ रही है और कहीं अँधेरा है। रोहितीव तव गण्डलेखयोरुल्लसत्प्रकृतिजप्रसादयोः। 8/74 अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता से खिले हुए तुम्हारे गाल ऐसे लग रहे हैं, मानो उस
पर चाँदनी चढ़ती आ रही हो। 3. ज्योत्स्ना :-[ज्योतिरस्ति अस्याम्-ज्योतिस्+न, उपघालोपः] चाँदनी।
पुपोष लावण्यं मयान्विशेषाञ्जयोत्स्नान्तराणीव कलान्तराणि 1/25 जैसे चाँदनी बढ़ने के साथ-साथ चन्द्रमा की और सभी कलाएँ भी बढ़ने लगती हैं, वैसे ही ज्यो-ज्यों पार्वतीजी बढ़ने लगी त्यों-त्यों उनके अंग भी सुडौल होकर
बढ़ने लगे। 4. शशिप्रभा :-चाँदनी, कौमुदी, ज्योत्स्ना।
एक पिंगल गिरौ जगद्गुरुर्निर्विवेश विशदाः शशिप्रभाः। 8/24 महादेवजी ने कुबेर की राजधानी कैलास पर रहकर उजली चाँदनी का भरपूर आनन्द लूटा। पत्र जर्जर शशि प्रभालवैरेभिरुत्कचयितुं तवालकान्। 8/72 तुम चाहो तो फूलों के समान दिखाई पड़ने वाले इन चाँदनी के फूलों से ही तुम्हारे केश गूंथ दिए जायें।
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