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कालिदास पर्याय कोश शक्य मङ्गुलिभिरुत्थितैरथः शाखिनां पतितपुष्पपेशलैः। 8/72 पत्तों के बीच से छनकर धरती पर पड़ने वाली चाँदनी ऐसी सुन्दर और सुहावनी दिखाई दे रही हैं, जैसे पेड़ों से झड़े हुए फूल हों।
केशर 1. केशर :-[के+सृ [१] +अच्, अलुक् स०] फूल का रेशा या तन्तु, पराग,
रेणु। च्युत केशर दूषितेक्षणान्यवतंसोत्पलताडनानि वा। 4/8 जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका
पराग पड़ जाने से जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं। 2. रेणु :-[पुं०, स्त्री०] [रीयतेः णुः नित्] धूल, पराग, पुष्परज, रेतकण।
ददौ रसात्पंकजरेणुसुगन्धि गजाय गण्डूषजलं करेणुः। 3/37 हथिनी बड़े प्रेम से कमल के पराग में बसा हुआ सुगन्धित जल अपनी सूंड से
निकालकर अपने हाथी को पिलाने लगी। 3. रजकण :-पराग, पुष्परज।
मृगाः प्रियालदुममञ्जरीणां रजः कणैर्विजितदृष्टिपातः। 3/31 आँखों में प्रियाल के फूलों के पराग के उड़-उड़कर पड़ने से जो मतवाले हरिण भली-भाँति देख नहीं पा रहे थे।
केसरिन् 1. केसरिन्:- [पुं०] [केसर+इनि] सिंह, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम।
विदन्ति मार्ग नखरन्ध्रमुक्तैर्मुक्ता फलैः केसरिणां किराताः। 116 उन सिंहों के नखों से गिरी हुई गज-मुक्ताओं को देखकर ही, यहाँ के किरात पता
चला लेते हैं, कि सिंह किधर गए हैं। 2. सिंह :-सिंह, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम।
दृष्ट: कथंचिद् गवयैर्विविग्नैरसोढसिंह ध्वनिरुन्ननाद्। 1/56 तब नील गाएँ घबराकर उसे देखती रह जाती थीं, कि यह सिंह जैसा गरजने वाला दूसरा कौन आ पहुँचा। जित सिंह भया नागा यत्राश्वा बिलयोनयः। 6/39
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