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कालिदास पर्याय कोश अकेली काठ के समान मूर्छित पड़ी हुई कामदेव की पत्नी रति को। 2. कुसुमायुधपत्नि :-रति, कामदेव की पत्नी।
अथ मदनवधू रूप्लवान्तं व्यसनकृक्षा परिपालयां बभूव । 4/46 शोक से दुबली रति, कामदेव के शाप बीतने की अवधि की उसी प्रकार बाट
जोहने लगी। 3. रति :-स्त्री० [रम्+क्तिन्] रति देवी, कामदेव की पत्नी।
रतिवलय पदारु चापमासज्य कण्ठे 12/64 रति के कंगन की छाप पड़े हुए गले में, धनुष कंधे पर लटका कर। स माधवेनाभिमतेन सख्या रत्या च साशंकमनुप्रयातः। 3/23 वह वसन्त को साथ लेकर उधर चल दिया, इनके पीछे-पीछे बेचारी रति मन में डरती चली जा रही थी, कि आज न जाने क्या होने वाला है। तं देशमारोपित पुष्प चापे रति द्वितीये मदने प्रपन्ने। 3/35 फिर जब अपने फूल के धनुष पर बाण चढ़ाकर रति को साथ लेकर कामदेव आया। तां वीक्ष्य सर्वावयवानावद्यां रते रपि ह्रीपदमादधानाम्। 3/51 कामदेव ने जब रति को भी लजाने वाली, अधिक सुन्दर अंगों वाली पार्वती को देखा। अज्ञातभर्तृव्यसना मुहूर्तं कृतोपकारेव रतिर्बभूव । 3/73 अपने सिर पर आई हुए इस भारी विपत्ति को देखकर कामदेव की स्त्री तो मूर्छित होकर गिर पड़ी, उसकी इन्द्रियाँ स्तब्ध हो गईं। किम कारणमेव दर्शनं विलपन्त्यै रतये न दीयते। 4/7 फिर बिना बात के ही मुझ बिलखती हुई को तुम दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो। उपचार पदं न चेदिदं त्वमनङ्ग कथम सता रतिः। 4/9 यदि वह बात केवल मेरा मन रखने भर को न होती, तो तुम्हारे राख हो जाने पर तुम्हारी यह रति भला कैसे जीती बची रह जाती। मदनेन विनाकृता रतिः क्षणमात्र किलजीवितेतिमे। 4/21 कामदेव के न रहने पर रति थोड़ी देर तक जीती रह गई। रति मभ्युपपत्तुमातुरां मधुरात्मानमदर्शयत्पुरः। 4/25 बिलखती हुई वियोगिनी रति को ढाढ़स बंधाने के लिए, वसन्त वहाँ आ खड़ा हुआ।
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