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कालिदास पर्याय कोश
5. वाह :-पुं० [उह्यतेऽनेनेति । वह+करणे घञ्] घोटक, बैल।
खे खेलगामी तमुवाह बाहः सशद्वचामीकर किंकणीकः। 7/49 बड़ी मीठी चाल से चलने वाला और अपने गले में लटकी हुई सोने की छोटी-छोटी घंटियों को टनटनाता हुआ वह बैल।
उच्च
1. उच्च:- त्रि० [उच्चिनोतीति । उत्+चिञ्+अन्येभ्योऽपि' इति ड] उन्नत, ऊँचा।
निबोध यज्ञांशभुजामिदानी मुच्चैर्द्विषामीप्सितमेतदेव। 3/14 समझ लो कि बलवान शत्रु से सताए हुए और डरे हुए देवता तुमसे यही काम कराना चाहते हैं। यथा श्रुत वेद विदां वर त्वया जनोऽयमुच्चैः पदलंघनोत्सुकः। 5/61 हे वेद के परम पण्डित! आपने जैसा सुना है और मेरे मन में वैसा ही ऊँचा पद पाने की साध जाग उठी है। मूर्धान मालि क्षितिधारणोच्चमुच्चस्तरं वक्ष्यति शैलराजः। 7/68
एक तो पृथ्वी धारण करने से [हिमालय का] उनका सिर वैसे ही ऊँचा था। 2. उन्नत :-[उत्+नम्+क्त] उच्च, उदग्र, तुङ्ग ।
उन्नतेन स्थिति मता धुरमुद्वहता भुवः। 6/30 फिर ऐसी ऊँची प्रतिष्ठा वाले और पृथ्वी को धारण करने वाले।
उतमांग 1. उतमांग :-क्ली० [उत्तमं पशस्तमङ्गम्] सिर, मस्तक।
स तहुकूलादविदूरमौलिर्बभौ पतद्गंग इवोत्तमांङ्गो। 7/41 उस समय शिवजी के सर के पास छत्र से लटकता हुआ कपड़ा ऐसा जान पड़ता
था, मानो गंगाजी की धारा ही गिर रही हो। 2. चूड़ा :-स्त्री० [चोलयति मस्तका धुपरि उन्नता भवतीति] शिखा, सिर, मस्तक।
नादत्ते केवलां लेखां हरचूड़ामणीकृताम्।। 2/34 केवल उस एक कला को छोड़ देता है, जिसे शिवजी ने अपने मस्तक का मणि बना लिया है। चरणौ रञ्जयन्त्वस्याश्चूड़ामणि मरीचिभिः। 6/81
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