________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Achary
570
कालिदास पर्याय कोश इयं महेन्द्रप्रभृतीनिधिश्रियश्चतुर्दिगीशनवमत्य मानिनी। 5/53 महेन्द्र आदि बड़े-बड़े चारों दिगपालों को छोड़कर ये मानिनी उन महादेव जी
से।
9. वासव :-पुं० [वसुदेव । प्रज्ञा द्यण] इन्द्र।
गुरुं नेत्र सहस्त्रेण नोदयमास वासवः। 2/29 इन्द्र ने अपने सहस्र नेत्रों को इस प्रकार चलकार वृहस्पतिजी को बोलने के लिए संकेत किया। स वासवेनासनसनिकृष्ट मितो निषीदेति विसृष्ट भूमिः। 3/2 इन्द्र ने कामदेव से कहा-आओ यहाँ बैठो। यह कहकर उसे अपने पास ही बैठा
लिया। 10. वृत्र :-पुं० [वृत्+ स्फयितञ्चि व ञ्चीति' रक्] [वृत + रक्] इन्द्र।
क्रुदेऽपि पक्षिच्छिदि वृत्रशत्राववेदनाज्ञां कुलिश क्षतानाम्।। 1/20 जिसने पर्वतों के पंख काटने वाले इन्द्र के रुष्ट होने पर भी, उनके वज्र की चोट अपने शरीर को नहीं लगने दी। वृतस्य हन्तुः कुलिशं कुष्ठिता श्रीव लक्ष्यते।। 2/20
वृत्र को मारने वाला वज्र भी आज चमक खोकर कुण्ठित क्यों दिखाई दे रहा है। 11. वृत्रहण :-इन्द्र।
कम्पेन म ः शतपत्रयोनिं वाचा हरिं वृत्रहणं स्मितेन। 7/47 शिवजी ने ब्रह्माजी की ओर सिर हिलाकर, विष्णुजी से कुशल मंगल पूछकर,
इन्द्र की ओर मुस्कराकर। 12. शतमख :-पुं० [शतं मखा: यज्ञाः यस्य] इन्द्र।
शतमख मुपतस्थे प्राञ्जलिः पुष्पधन्वा। 2/64
कामदेव हाथ जोड़कर इन्द्र के आगे आ खड़ा हुआ। 13. हर :-पुं० [हरति पापानीति । ह+अच्] इन्द्र ।
स द्विनेत्रं हरेश्चक्षुः सहस्त्रनयनाधिकम्। 2/30 जिनके दो नेत्रों में ही इन्द्र के सहस्र नेत्रों से भी बढ़कर देखने की शक्ति थी।
ईक्ष
1. ईक्ष :-[ईक्षते, ईक्षित] दिखना, दिखाई देना, देखना।
For Private And Personal Use Only