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कालिदास पर्याय कोश विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनंशरीर बद्धः प्रथमाश्रमो यथा । 5/30 गठीले शरीर वाला एक जटाधारी ब्रह्मचारी उस तपोवन में आया। वह ऐसा जान पड़ता था, मानो साक्षात् ब्रह्मचर्याश्रम ही उठा चला आ रहा हो। तदा सहास्माभिरनुज्ञया गुरोरियं प्रपन्ना तपसे तपोवनम्। 5/50 ये अपने पिता की आज्ञा लेकर, हम लोगों के साथ तप करने के लिए यहाँ तपोवन में चली आईं।
आसन
1. आसन :-क्ली० [आस्यतेउपविश्यतेऽस्मिन् । आस्+अधि करणे+ल्युट्]
आसन। स वासवेनासन संनिकृष्टमितो निषीदेति विसृष्टभूमिः। 3/2 इन्द्र ने कामदेव से कहा-आओ यहाँ बैठो। यह कहकर अपने पास ही बैठा
लिया।
तत्र वेत्रासनासीनान्कृतासन परिग्रहः।। 6/53 हिमालय ने इन ऋषियों को बेंत के आसनों पर बैठा दिया। क्लृप्तोपचारां चतुरस्रवेदी तावेत्य पश्चात्कनकासनस्थौ।। 7/88 वहाँ से महादेवजी और पार्वतीजी फूलों से सजे हुए चौक में लाए गए और सोने
के आसन पर बैठा दिए गए। 2. विष्टर :- [वि+स्तृ+अप्, षत्वम्] आसन।
तत्रेश्वरो विष्टर भाग्यथा वत्सरत्नमयं मधुमच्च गव्यम्।। 7/72 वहाँ आसन पर महादेवजी को बैठाकर हिमलय ने रत्न, अर्ध्य, मधु, दही और नए वस्त्र दिए।
1. इन्द्र :-[इन्द+रन्, इन्दतीति इन्द्रः, इदिऐश्वर्ये ] इन्द्र।
अनुकूलयतीन्द्रोऽपि कल्पदुम विभूषणैः।। 2/39 इन्द्र भी अपने दूतों के हाथ कल्पवृक्ष के सुन्दर रत्न उसके पास भेजकर उसे प्रसन्न रखा करते हैं। देह बद्धमिवेन्द्रस्य चिरकालार्जितं यशः। 2/47 जो बहुत दिनों से इकट्ठा किए हुए इन्द्र के यश के समान ही महान् था।
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