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कालिदास पर्याय कोश 5. पंचशर :-पुं० [पञ्च शराः यस्य सः] कामदेव।
शापावसाने प्रतिपन्न मूर्ते या चिरे पञ्च शरस्य सेवाम्। 7/92 आपका दिया हुआ शाप भी समाप्त हो गया, इसलिए आज्ञा दें तो कामदेव फिर जी उठे और आपकी सेवा करें। पुष्पचाप :-पुं० [पुष्पाणि चापस्येति] कामदेव। जितेन्द्रिय शूलिनि पुष्प चापः स्वकार्य सिद्धिं पुनराशशंस। 3/5 तब कामदेव के मन में जितेन्द्रिय महादेव जी को वश में करने की आशा फिर
हरी हो उठी। 7. पुष्पधन्वन :-पुं० [पुष्पाणि धनुरस्येति। धनुषश्च' इति अनङादेशः] कामदेव।
शतमखमुपतस्थे प्राञ्जलिः पुष्प धन्वा । 2/74 कामदेव हाथ जोड़कर इन्द्र के आगे आ खड़ा हुआ। संमोहनं नाम च पुष्पधन्वा धनुष्यमोघं, समधत्त बाणम्। 3/77 कामदेव ने भी सम्मोहन नामक अचूक बाण अपने धनुष पर चढ़ा लिया। इमां यदि व्यायतपात मक्षिणो द्विशीर्णमूर्तेरपि पुष्पधन्वनः।। 5/54 उस जलकर राख बने हुए कामदेव का यह बाण, मेरी सखी के हृदय में लगकर
बड़ा भारी घाव कर गया है। 8. मकरध्वज :-पुं० [मकरेण चिह्नितो ध्वजो यस्य । मकरः ध्वजे यस्येति वा]
कामदेव। पराजितेनापि कृतौ हरस्य यौ कण्ठपाशौ मकरध्वजेन। 1/41 कामदेव ने शिवजी से हार जाने पर उनके गले में इन [पार्वती की] भुजाओं का
फन्दा बनाकर डाल दिया था। १. मदन :-पुं० [मदयतीति, मद्+णिच्, ल्यु] कामदेव।
तथेति शेषामिव भर्तृराज्ञामादाय मूर्ध्वा मदनः प्रतस्थे। 3/22 कामदेव बोला-जैसी आज्ञा ! और जैसे कोई उपहार में दी हुई माला लेकर सिर पर चढ़ा लेता है, वैसे ही कामदेव ने इन्द्र की आज्ञा सिर चढ़ा ली। तं देशमारोपित पुष्पचापे रतिद्वितीये मदने प्रपन्ने।। 3/35 फिर जब अपने फूल के धनुष पर बाण चढ़ाकर, रति को साथ लेकर कामदेव
आया। तावत्स वह्निर्भव नेत्रजन्मा भस्मावशेष मदनं चकार। 3/72
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