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कुमारसंभव
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6. कुशेशय :-क्ली० [कुशे जले शेते । कुश+शौ+अच्, अलुक्समासः] कमल।
बद्धकोशमपि तिष्ठति क्षणं सावशेष विवरं कुशेशयम्। 8/39 देखो ! ये कमल इस समय मुंद चले, फिर भी पल भर के लिए अपना मुंह थोड़ा
सा इसलिए खुला रखे हुए हैं कि। 7. तामरस :-क्ली० [तामरे जले अस्तीति। सस+ड। यद्वा काङक्षार्थान्तमेघञ्,
रस आस्वादने ण्यन्तादेस्प, तामं च तद्रसम्] कमल, जलज। हेमतामरस ताडित प्रिया तत्कराम्बुविनिमीलते क्षणा। 8/27 वहाँ वे सोने के कमल तोड़-तोड़ कर उनसे महादेव जी को मारती और महादेवजी
भी ऐसा पानी उछालते, कि इनकी आँखें बन्द हो जाती। 8. नीलोत्पल :-क्ली० [नीलं नीलवर्णमुत्पलमिति] कमल।
प्रवात नीलोत्पल निर्विशेष मधीर विप्रेक्षित मायताक्ष्या। 1/46 उन बड़ी-बड़ी आँखों वाली की चितवन, आँधी से हिलते हुए नीले कमलों के
समान चंचल थी। 9. पद्म :-क्ली०, पुं० [पद्यते इति, पद् गतौ+ अर्तिस्तुमुहस्रिति' मन्] कमल।
चन्द्रं गता पद्मगुणान्न भुङक्ते पद्माश्रिता चान्द्रमसीमभिरव्याम्। 1/43 रात को जब वे चन्द्रमा में पहुँचती थीं, तब वे उन्हें कमल का आनन्द नहीं मिल पाता था और जब दिन में वे कमल में आ बसती थीं, तब रात के चन्द्रमा का आनन्द उन्हें नहीं मिल पाता था। ध्रुवं वपुः काञ्चनपद्मनिर्मितं मृदु प्रकृत्या च ससारमेव च। 5/19 मानो उनका शरीर सोने के कमलों से बना था, जो कमल से बने होने के कारण स्वभाव से कोमल भी था, पर साथ ही साथ सोने का बना होने से ऐसा पक्का भी था कि तपस्या से कुंभला न सके। मुखेन सा पद्यसुगन्धिना निशि प्रवेपमानाधरपत्र शोभिना। 5/27 उन जाड़े की रातों में जल के ऊपर पार्वती जी का मुँह भर दिखाई पड़ता था, जाड़े से उनके ओंठ कांपते थे और उनकी साँस से कमल की गन्ध के समान जो सुगन्ध निकल रही थी, उसकी गमक चारों ओर फैल जाती थी। लग्नद्विरेफं परिभूय पद्मं समेघ लेखं शशिनश्च बिम्बम्। 7/16 भौरों से घिरा हुआ कमल और बादल के टुकड़ों में लिपटा हुआ चन्द्रमा। प्रणेमतुस्तौ पितरौ प्रजानां पद्मासनस्थाय पितामहाय। 7/86
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