________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
558
कालिदास पर्याय कोश खं हृतातपजलं विवस्वता भाति किंचिदिव शेषवत्सरः। 8/37 देखो ! सूर्य ने आकाश से धूप का पानी खींच लिया है, पश्चिम में कुछ-कुछ उजाला रहने से ऐसा लग रहा है, कि उधर अभी थोड़ा-थोड़ा पानी बचा रह गया
गगन :-गच्छनस्मिन-गम्+ल्युट्, ग आदेशः] आकाश, व्योम। गगनादवतीर्णा सा यथा वृद्ध पुरस्सरा। 6/49
आकाश से एक-एक करके उतरते हुए वे मुनि। 5. नभ :-[नभ्+अच्] आकाश।
निकामतप्ता विविधेन वह्निना नभश्चरेणेन्धन संभृतेन सा। 5/23 ईधन की आग तथा सूर्य की गर्मी से तपे हुए पार्वती जी के शरीर से भाप निकल उठी। पश्य पार्वति नवेन्दुरश्मिभिर्भिन्न सान्द्र तिमिरं नभस्तलम्। 8/64 हे पार्वती! उठे हुए चन्द्रमा की किरणों से अँधेरा मिट जाने पर आकाश ऐसा
जान पड़ रहा है। 6. व्योम :-क्ली० [व्ये+मनिन्, पृषो०] आकाश, अन्तरिक्ष।
ते प्रभा मण्डलै फ्रेमद्योत यन्तस्तपोधनाः। 6/4 स्मरण करते ही अपने तेजोमण्डलों से उजाला करते हुए तपस्वी। व्योम गंगा प्रवाहेषु दिङ् नाग मद गन्धिषु। 6/5 जिन्होनें उस आकाश गंगा में स्नान कर रखा था, जिसके जल में दिग्गजों के मद की सुगन्ध आया करती थी।
_ आज्ञा 1. अनुज्ञा :-[अनु+ज्ञा+अङ्, ल्युट, वा] आज्ञा, आदेश।
अथानुरूपाभिनिवेशतोषिणा कृताभ्यनुज्ञा गुरुणा गरीयसा। 5/7 जब हिमालय ने समझ लिया कि पार्वती जी अपनी सच्ची टेक से डिगेंगी नहीं,
तब उन्होंने उन्हें तप करने की आज्ञा दे दी। 2. आज्ञा :- [आ+ज्ञा+अ+टाप्] आदेश, हुकुम।
आज्ञापाय ज्ञातविशेष पुंसां लोकेषु करणीयमस्ति। 3/3 सबके गुणों को पहचानने वाले हे स्वामी ! आप आज्ञा दीजिए, तीनों लोकों में ऐसा कौन सा काम है, जो आप मुझसे कराना चाहते हैं।
For Private And Personal Use Only