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कुमारसंभव
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संसार भर के कामों को देखने वाले शंकर जी ने स्वयं अपने लिए, आपकी पुत्री पार्वती मांगी है। तन्मातरं चाश्रुमुखीं दुहितृस्नेह बिक्लवाम्। 6/92 मेना अपनी पुत्री के स्नेह में इतनी अधीर हो गईं कि उनकी आँखें डबडबा आईं। तमेव मेना दुहितुः कथंचिद्विवाहदीक्षातिलक चकार। 7/24 किसी प्रकार उन्होंने [मेना ने] अपनी पुत्री के माथे पर विवाह का तिलक कर
दिया। 6. वत्स :-[वद्+स:] पुत्री, वत्स, पुत्र।।
मनीषिताः सन्ति गृहेषु देवतास्तपः क्व वत्से क्वच तावकं वपुः। 5/4 वत्से! तुम्हारे घर में ही इतने बड़े-बड़े देवता हैं कि तुम जो चाहो माँग लो। बताओ कहाँ तो तपस्या और कहाँ तुम्हारा कोमल शरीर। एहि विश्वात्मने वत्से भिक्षासि परिकल्पता। 6/88 यहाँ आओ वत्से ! देखो, घर-घर में रमने वाले शिव जी ने मुझसे तुम्हें माँगा है
और वह भिक्षा लेने के लिए। वधू द्विजः प्राहह तवैष वत्से वह्निर्विवाहं प्रतिकर्म साक्षी। 7/8 तब पुरोहितजी ने पार्वती जी से कहा कि हे वत्स! यह अग्नि तुम्हारे विवाह का साक्षी है।
आनन
1. आनन :-[आ+अन्+ल्यूट्] मुँह, मुख।
यथा प्रसिद्धैर्मधुरं शिरोरुहर्जटाभिरष्येवम भूत्तदाननम्। 5/9 जटा रख लेने पर भी उनका मुख वैसा ही प्यारा लगता था, जैसा पहले सजी हुई चोटियों से लगता था। तदाननश्रीरलकैः प्रसिद्धैश्चिच्छेद सादृश्यकथा प्रसंगम्। 7/16 कोई भी ऐसा न दिखाई दिया जो उनके गुंथी हुई चोटियों वाले मुख की सुन्दरता के आगे ठहर सके। तया प्रवृद्धानन चन्द्रकान्त्या प्रफुल्लचक्षुः कुमुदः कुमार्या। 7/74 अत्यन्त चमकते हुए चन्द्रमा के समान मुखवाली पार्वती को देखकर शंकर जी के नेत्र रूपी कुमुद खिल गए।
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