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कालिदास पर्याय कोश 3. अरविन्द :-क्ली० [अराकराणि हलानि तत्सादृश्यात् अराः, तान् विन्दति लभते
इत्यथे विद्+श] कमल, जलज। उन्मीलितं तूलिकयेव चित्रं सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम्। 1/32 जैसे फूंची से ठीक रंग भरने पर चित्र खिल उठता है और सूर्य की किरणों का परस पाकर कमल का फूल हँस उठता है। आज हतुस्च्चरणौ पृथिव्यां स्थालरविन्दश्रियमव्यवस्थाम्। 1/33 जब वे अपने इन चरणों को उठा-उठाकर रखती चलती थीं, तब तो ऐसा जान पड़ता था, मानो वे पग-पग पर स्थल कमल उगाती चल रही हो। उत्पल :-क्ली० [उत्पलतीति । पल् गतौ, पचाद्य च] कमल, जलज। च्युत केशरदूषिते क्षणान्यवतं सोत्पलताडनानि वा। 4/8 जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका पराग पड़ जाने से, जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं। कमल :-क्ली० [कमेः णिङभावे वृषादित्वात् क्लच । कम्+अल्+अच्] कमल, जलज। दीर्घिका कमलोन्मेषो यावन्मात्रेण साध्यते। 2/33 उसके नगर पर केवल उतनी ही किरणें फैलाता है, जिनसे ताल के कमल भर खिल उठे। तथातितप्तं सविमुर्गभस्तिभिर्मुखं तदीयं कमलश्रियं दधौ। 5/21 इस प्रकार तप करते रहने पर भी उनका मुख सूर्य की किरणों से तपकर कुम्हलाया नहीं, वरन् कमल के समान खिल उठा। लीला कमल पत्राणि गणयामास पार्वती। 6/84 उस समय पार्वतीजी अपने पिता के पास नीचा मुँह किए खिलौने के कमल के पत्ते बैठी गिन रही थीं। तयो रुपर्यायतनालदंडमाधत्त लक्ष्मीः कमलात पत्रम्। 7/89 जल के बूंदों से भरे हुए लम्बी डंठल वाले कमल का छत्र उनके ऊपर लगाकर खड़ी हो गईं। उच्छ्वसत्कमल गन्धये ददौ पार्वती वदन गन्ध वाहिने। 8/19 तब खिले हुए कमल की गंध वाले पार्वतीजी के मुंह की फूंक पाने के लिए वे अपना नेत्र उठाकर उनके मुँह तक पहुँचा देते।
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