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कालिदास पर्याय कोश
अरुण
1. अर्क :-पुं० [अनु+कर्मणि घञ्, कुत्वम्] सूर्य।
आवर्जिता किंचिदिव स्तनाभ्यां वासो वसाना तरुणार्करागम्। स्तनों के बोझ से झुके हुए शरीर पर, प्रात:काल के सूर्य के समान लाल कपड़े पहने हुए। सत्यमर्काच्च सोमाच्च परमध्यास्महे पदम्। 6/19
यद्यपि हम लोग सूर्य और चन्द्रमा दोनों से यों ही ऊपर रहते हैं। 2. अर्हपति :-सूर्य, रवि।
संक्षये जगदिव प्रजेश्वरः संहरत्यहरसावर्हपतिः। 8/30 सूर्य उसी प्रकार दिन को समेट रहा है, जैसे प्रलय के समय ब्रह्मा जी सारे संसार को समेट लेते हैं। अरुण :-पुं० [ऋ+उनन्] सूर्य। रागेण बालारुणकोमलेन चूतप्रवालोष्ठमलंचकार। 3/30 प्रात:काल के सूर्य की कोमल लाली से चमकने वाले आम की कोंपलों से अपने ओंठ रंग लिए हों। वद प्रदोषे स्फुट चन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/44 बताइए भला बढ़ती हुई रात की सजावट, खिले हुए चन्द्रमा और तारों से होती
है या सबेरे के सूर्य की लाली से। 4. आदित्य :-पुं० [अदितेरादित्यस्य वा अपत्यम्+ण्य] सूर्य।
अमी च कथमादित्याः प्रतापक्षति शीतलाः। 2/24 ___यह बारह आदित्य भी अपना तेज गँवाकर ठण्डे पड़े हुए। 5. उष्णरश्मि :-सूर्य।
कुबेरगुप्तां दिशमुष्णरश्मौ गन्तुं प्रवृत्ते समयं विलंधय। 3/25
वसन्त के छाते ही असमय में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण चले आए। 6. दिवाकर :- सूर्य, रवि।
दिवाकर द्रक्षति यो गुहासु लीनं दिवाभीत मिवान्धकारम्। हिमालय की लम्बी गुफाओं में दिन में भी अँधेरा छाया रहता है। ऐसा लगता है मानो अंधेरा भी दिन से डरने वाले उल्लू के समान, इसकी गहरी गुफाओं में जाकर दिन में छिप जाता है।
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