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कालिदास पर्याय कोश
4. षटपद :- भौंरा ।
न षट्पदश्रेणिभिरेव पंकजं सशैव लासंगमपि प्रकाशते । 5/9
क्योकि केवल भौंरों से ही कमल अच्छा नहीं लगता, वरन् सेवार से लिपटा होने
पर भी वह वैसा ही सजीला लगता है।
मन्दरस्य कटकेषु चावसत्पार्वती वदन पद्मषट्पदः । 8/23
पार्वती जी के मुख कमल का रस लेने वाले महादेव जी वहाँ से चलकर मन्दराचल की उस ढाल पर पहुँचे ।
आविभातचरणाय गृह्णते वारि वारिरुहबद्ध षट्पदम् । 8/33
ये हाथी उस ताल की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, जहाँ कमलों में भौरे बन्द पड़े हैं। षट्पदाय वसतिं ग्रहीष्यते प्रीतिपूर्वमिव दातुमन्तरम् । 8/39 जो भरे बाहर रह गये हों, उन्हें हम प्रेम से भीतर बसा लें।
मुक्त षट्पदविराव मंजसा भिद्यते कुमुदमा निबन्धनात् । 8/70
यह जो भौरों की गूँज से कुमुद खिला रहा है, वह ऐसा लगता है, कि इसका पेट फट गया हो ।
अवतंस
1. अवतंस
[अब+तंस्+ घञ्] कर्णफूल ।
च्युत केशर दूषितेक्षणान्यवतंसोत्पलताडनानि वा । 4/8
जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका पराग पड़ जाने से जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं ।
तं मातरे देवमनुब्रजन्त्यः स्ववाहनक्षोभ चलावतंसाः । 7/36 अपने तेजोमण्डल की चमक से गोरे-गोरे मुख वाली सुन्दर माताएँ, जब अपने रथों पर बैठकर पीछे-पीछे चलीं, तो रथों के झटके से उनके कर्णफूल हिलने
लगे ।
वधूमुखं क्लान्तयवावतंसमाचार धूम ग्रहणाद्बभूव । 7 / 82
वधू के मुँह पर पीसने की बूँदें छा गईं, आखों का काला आँजन फैला गया और कानों पर धरे हुए जवे भी धुँधले पड़ गए ।,
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2. कर्णपूर : - पुं० [कर्ण पूरयति अलकरोतीति । कर्ण+पूर+'करमण्यम्'+इति अण् ] अवतंस, कर्णफूल ।