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कुमारसंभव
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3. वाष्प :-पुं० [ओवै शोषणे, यद्वा बाधते इति] आँसू, नेत्र-जल।
चामरेः सुर बन्दीनां वाष्प सीकर वर्षिभिः। 2/42 देवतओं की बन्दी स्त्रियाँ गरम-गरम साँसें लेती हुई और आँसू बहाती हुई, उस पर चँवर डुलाया करती हैं।
अश्व
1. अश्व :-पुं० [अश्वेत मार्गं व्याप्नोति। अशू+व्याप्तौ, असू पुषिलटीति क्वन।
अश+ कवन्] घोड़ा। न दुर्वह श्रोणि पयोधरार्ताभिन्दनित मन्दां गतिमश्वमुख्यः। 1/11 अपने भारी नितम्बों और स्तनों के बोझ के मारे वे बेचारी शीघ्रता से चल नहीं पाती और चाहते हुए भी वे अपने स्वभाविक घोड़े की गति को नहीं छोड़ पातीं। अधः प्रस्थापिता श्वेन समावर्जित केतुना। 6/7 जिनके तले से जाता हुआ सूर्य अपने घोड़े नीचे रोककर। जित सिंह भया नागा यत्राश्वा विलयोनयः। 6/39 वहाँ के हाथी ऐसे लगते थे, जैसे सिंह को पावें तो पछाड़ दें, और घोड़े तो सभी
विल जाति के थे। 2. धुर्ये :-पुं० [धुर्+यत्] घोड़ा, अश्व।
येनेदं धियते विश्वं धुर्यैर्यानमिवाध्वनि। 6/76 संसार को इस प्रकार ठीक से चलाने वाले हैं, जैसे घोड़े मार्ग में रथ को लीक
में बाँधे रहते हैं। 3. हय :-पुं० [हयति गच्छतीति। हय्+अच्] घोड़ा, अश्व।
उच्चै रुच्चैः श्रवास्तेन हयरत्न महारिचः। 2/47 उसने उच्चैः श्रवा नाम का वह सुन्दर घोड़ा भी छीन लिया।
अस
1. अस :-होना, हुआ।
कुले प्रसूतिः प्रथमस्य वेधसस्त्रिलोक सौन्दर्य मिवोदितं वपुः। 5/41 ब्रह्मा के वंश में तो आपका जन्म, शरीर भी आपका ऐसा सुन्दर मानो तीनों लोकों की सुन्दरता आप में लाकर भरी हो।
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