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कुमारसंभव
वाचस्पतिः सन्नपि सोऽष्टमूर्ती त्वा शास्यचिन्ता स्तिमितो बभूव। 7/87 वाणी के स्वामी होते हुए भी उनकी यह समझ मे नहीं आया कि सब इच्छाओं से परे रहने वाले शंकर जी को हम क्या आशीर्वाद दें। तस्यपश्यति ललाट लोचने मोघयलविधुरा रहस्य भूत। 8/7 शिवजी भी ऐसे गुरु थे कि झट अपना तीसरा नेत्र खोल लेते और ये हार मान कर बैठ जाती। भाव सूचितमदृष्ट विप्रियं दाढर्य भाक्क्षणवियोगकातरम्। 8/15 जो कहीं क्षण भर के लिए भी एक-दूसरे से अलग हुए कि बस तड़पने लगते।
अस्वम् 1. अस्वम् :-बाण।
असंभृतं मण्डनमंगयष्टेरनासवास्वम् करणं मदस्य। 1/31
ऐसा बाण मारा जो मदिरा के बिना ही मन को मतवाला बना देता है। 2. इषु :-[पुं० स्त्री०] [इष्यति गच्छतीति । इष्+उ] बाण।
सच त्वदेकंषुनिपात साध्यो बहमाङ्गभूबॉणि योजितात्मा। 3/15 इसलिए मंत्र के बल से ब्रह्म में ध्यान लगाए हुए महादेव जी की समाधि तुम्ही
अपने एक बाण से तोड़ सकते हो। 3. वज्र :-पुं० क्ली० [वजतीति, वज् गतौ+'ऋन्द्रा ग्रवज्रविप्रेति' रन् प्रत्ययेन
निपातितः] वज्र, बाण। प्रसीद विश्राम्यतु वीर वज्रं शरर्मदीयैः कतमः सुरारिः। 3/9 हे वीर! आप चिन्ता छोड़कर अपने वज्र को भी विश्राम कर लेने दें। आप मुझे बताइए कि वह कौन सा दैत्य है। वजं तपोवीर्य महत्सु कुष्ठं त्वं सर्वतो गामिच साधकं च। 3/12 शत्रुओं की तपस्या ने हमारे वज्र की धार उतार दी है। अब तुम्हीं ऐसे बच रहे हो, जो बेरोक-टोक सब ओर जा भी सकते हो और हमारा काम भी कर सकते हो।
अहन् 1. अहन् :-क्ली० [न जहाति त्यजति सर्वथा परिवर्तनं न+हा+ कनिन् न०त०]
दिन, दिवस।
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