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कुमारसंभव
अरण्यबीजाञ्जलिदानलालितास्तथा च तस्यां हरिणा विशश्वसुः। 5/19 वहाँ के जिन हरिणों को उन्होंने अपने हाथ में तिन्नी के दाने खिला-खिला कर
पाला पोसा था, वे इतने परच गए थे। 2. कानन :-क्ली० [कं जलम् अननं जीवनमस्य । यद्वा कानयति दीपयाति, कन्
दीप्तौ+णिच्+ल्युट्] वनम्, वन, जंगल। तच्छासनात्काननमेव सर्वं चित्रार्पितारम्भमिवावतस्थे। 3/42 यहाँ तक कि सारा वन उस एक ही संकेत में ऐसा लगने लगा, मानो चित्र खिंचा
हुआ हो। 3. वन :-क्ली०स्त्री० [वनतीति, वन+पचाद्यच्] अटवी, विपिन, गहन, अरण्य।
तस्मिन्वने संयमिनां मुनीनो तपः समाधेः प्रतिकूलवर्ती। 3/24 उस वन में पहुँच कर मुनियों के तप की समाधि को डिगाने वाला। दंष्ट्रिणो वन वराहयूथपा दष्टभंगुरबिसाङ्करा इव । 8/35 बड़े-बड़े दाँत वाले लंबे-चौड़े जंगली सूअर निकले चले आ रहे हैं, इनके दाँत ऐसे दिखाई देते हैं, मानो इनके जबड़ों में खाए हुए कमलों की डंठलें अटकी हुई हों। त्वामियं स्थितिमतीमुपागता गन्धमादन वनाधि देवता। 8/75 गन्ध मादन की वनदेवी अपने आप तुम्हारी आवभगत करने आ पहुँची है। पद्मभेदापिशुनाः सिषेविरे गन्धमादनवनान्त मारुताः। 8/86 उस समय गन्ध मादन वन का जो पवन मन्द-मन्द बह रहा था और जिसे छू जाने से ही मानो कमल खिलते जा रहे थे।
अरणि
1. अरणि :-पुं० स्त्री० [ऋ+अनि] ईंधन, जलावन।
उत्पत्तये हविर्भोक्तुर्यजमान इवारणिम्। 6/28
अग्नि उत्पन्न करने के लिए यजमान अरणि लाता है। 2. ईंधन :- जलावन।
निकाम तप्ता विविधेन वह्निना नभश्चरेणेन्धन संभृतेन सा। 5/23 उधर ईंधन की आग तथा सूर्य की गर्मी से तपे हुए पार्वतीजी के शरीर से भाप निकल उठी।
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