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कालिदास पर्याय कोश रागेण बालारुणकोमलेन चूत प्रवालोष्ठमलं चकार। 3/30 प्रातः काल के सूर्य की लाली से चमकने वाले आम की कोपलों से अपने ओठ रंग लिए हों। अकारि तत्पूर्व निबद्धया तया सरागमस्या रसनागुणास्पदम्। 5/10 पहले पहल तगड़ी पहनने से उनकी सारी कमर लाल पड़ गई थी। विसृष्टरागादधरान्निवर्तित स्तनांग रागारुणि ताच्च कन्दुकात्। 5/11 कहाँ तो वे अपने हाथों से ओठ रंगा करती थीं और स्तन के अंगराग से लाल रंगी हुई गेंद खेला करती थीं। लोहित :-क्ली० [रुह्यते इति। रुह+ रुहेस्श्चलो वा' इति इतन्, रस्य लत्वम्] लाल, लाल रंग का। विकुंचित भूलतमाहिते तया विलोचने तिर्यगुपान्त लोहिते। 5/74 उनकी आँखें लाल हो गई और उन्होंने भौंहे तानकर उस ब्राह्मण की ओर आँखें तरेरकर देखा। लोहिता यति कदाचिदातये गन्धमादन वनं व्यगाहत। 8/28 गन्धमादन पर्वत पर जा पहुँचे, उस समय सांझ हो चली थी और सूर्य लाल-लाल दिखाई पड़ रहे थे। लोहितार्कमणि भाजनार्पितं कल्पवृक्ष मधु बिभ्रति स्वयम्। 8/75 तुम्हें यहाँ बैठी हुईं देखकर लाल सूर्यकान्त मणि के प्याले में कल्पवृक्ष की
मदिरा लिए हुए स्वयं। 7. शोण :-पुं० [शोण वर्णे+ अच्] लाल रंग।
न्यस्तक्षरा धातुरसेन यत्र भूर्जत्व चः कुंजर बिंदु शोणाः। 1/7 जिन भोजपत्रों पर लिखे हुए अक्षर, हाथी की सूंड पर बनी हुई लाल बुंदकियों जैसे दिखाई पड़ते थे।
अर्चि
1. अर्चि :-स्त्री०,क्ली० [अर्च+इसि] अग्निशिखा।
स्फुरन्नुदर्चिः सहसा तृतीया दक्ष्णः कृशानुः किल निष्पपात। 3/71 झट उनका वह तीसरा नेत्र खुला और उसमें से सहसा जलती हुई आग की लपटें निकल पड़ीं।
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