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कुमारसंभव
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व्यकीर्यंत त्र्यम्बक पाद मूले पुष्पोच्चयः पल्लवभंगभिन्नः। 3/61 फिर अपने हाथ से चुने हुए पत्तों के टुकड़े मिले हुए वासन्ती फूलों का ढेर
शंकरजी के पैरों पर चढ़ा दिया। 22. त्रिनेत्र :-महादेव, शिव, शंकर।
अयुक्त रूपं किमतः परं वद त्रिनेत्रव सः सुलभं तवापि यत्। 5/69 यदि शिवजी आपको मिल भी जायें, तो इससे बढ़कर अच्छी और क्या बात
होगी। 23. त्रिलोकनाथ :-महादेव, शिव, शंकर।
अकिंचनः सम्प्रभवः स संपदा त्रिलोक नाथः पितृ सद्मगोचरः। 5/77 पास में कुछ न होते हुए भी सारी सम्पत्तियाँ उन्हीं से उत्पन्न होती हैं, श्मशान में
रहते हुए भी, वे तीनों लोकों के स्वामी हैं। 24. त्रिलोचन :-महादेव।
प्रति ग्रहीतुं प्रणयिप्रिय त्वात्रिलोचनस्तामुपचक्रमे च । 3/66 शिवजी ने भक्त पर प्रेम करने के नाते पार्वती जी की वह माला ली ही थी। वरेषु यद्वाल मृगाक्षि मृग्यते तदस्ति किं व्यस्तमपि त्रिलोचने। 5/72 हे मृग के छौने की आँख जैसी आँख वाली पार्वती जी ! वर में जो गुण खोजे
जाते हैं, उनमें से एक भी तो महादेवजी में नहीं है। 25. दिगम्बर :-महादेव, शिव।
वपुर्विरूपाक्षमलक्ष्य जन्मता दिगम्बर त्वेन निवेदितं वसु।। 5/72 और देखिए, जन्म का उनके कोई ठिकाना नहीं, और उनके सदा नंगे रहने से ही
आप समझ सकती होंगी कि उनके घर में क्या होगा। 26. देवदेव :-महादेव, शिव।
अयाचितारं नहि देवदेवमद्रिः सुतां ग्राहयितुं शशाक। 2/52 पर हिमालय ने सोचा कि जब तक स्वयं महादेवजी ही कन्या मांगने नहीं आते,
तब तक अपने आप उन्हें कन्या देने जाना ठीक नहीं जंचता। 27. नीलकंठ :-पुं० [नील: नीलवर्णः कण्ठो यस्य] शिव।
क्व नीलकंठ व्रजसीत्यलक्ष्य वागसत्यकंठार्पित बाहु बंधना। 5/547 हे नीलकण्ठ ! तुम कहाँ जा रहे हो और उसी सपने के धोखे में ये अपने हाथ ऐसे फैलाती थीं, मानो शिवजी के गले में हाथ डालकर उन्हें रोक रही हों।
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