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कुमारसंभव
इत्यवौममनुभूय शंकरः पार्थिवं च दयिता सखः सुखम्। 8/28 इस प्रकार अपनी प्राण प्यारी के साथ सांसारिक और स्वर्गीय दोनों सुख भोगते हुए। इत्युदारमभिधाय शंकरस्तामपाययत पानमम्बिकाम्।। 8/77 यह लुभावनी बात कहकर शंकरजी ने बड़ी उदारता से वह मदिरा पार्वजी जी
को पिला दी। 53. शंभु :- पुं० [शं मङ्गलं भवत्यस्मादिति, शं भवति भावतीत्यर्थः, इति वा]
महादेव, शिव, शंकर। शंभीर्यतध्वमाक्रष्टुमयस्कान्तेन लोहवत्।। 2/59 अब आप लोग ऐसा जतन कीजिए, कि जैसे चुम्बक से लोहा खिंच आता है, वैसे समाधि लगाए हुए शंकर जी का। सा वा शंभोस्तदीयां वा मूर्तिर्जलमयी मम। 2/60 शिवजी के वीर्य को केवल पार्वती जी धारण कर सकती हैं और हमारे वीर्य को
जल का रूप धारण करने वाली शिवजी की मूर्ति ही धारण कर सकती है। 54. स्थाणु :-पुं० [तिष्ठतीति । स्था + 'स्थोणुः' इति णु] शिव, शंभु, महादेव।
तपस्विनः स्थाणुवनौ कसस्तामाकालिकी वीक्ष्य मधु प्रवृत्तिम्। 3/34 महादेवजी के साथ उस वन में रहने वाले तपस्वी लोगों ने असमय में वसन्त को आया देखकर। वासराणि कतिचित्कथंचन स्थाणुना रतमकारि चानया। 8/13
कुछ दिनों तक तो महोदव जी ज्यों-त्यों करके पार्वती जी से संभोग करते रहे। 55. स्मरशासन :-शिव, शंकर, महादेव।
ऋषीज्योतिमयान्सप्त सस्मार स्मरशासनः।। 6/3 पार्वती के चले जाने पर महादेवजी ने तेज से जगमगाने वाले सप्त ऋषियों को
झट से स्मरण किया। 56. हर :- पुं० [हरति पापानीति । ह+अच्] शिव, शंकर, महादेव।
पराजितेनापि कृतौ हरस्य यौ कण्ठपाशौ मकरध्वजेन।। 2/41 कामदेव ने शिवजी से हार जाने पर उनके गले में इन भुजाओं का फन्दा बनाकर डाल दिया था। समादिदेशैकवर्धू भवित्री प्रेम्णा शरीरार्धहरां हरस्य। 2/50
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