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कालिदास पर्याय कोश
तदिदं कणशो विकीर्ययते पवनैर्भस्म कपोत कर्बुरम्।। 4/27 कबूतर के पंख के समान उसकी भूरी राख को यह पवन इधर-उधर बिखेर रहा
है।
3. मरुत :-पुं० [म्रियन्ते प्राणिनो यदभावादिति । मृ + 'मृग्रो-सतिः इति उत्]
वायु। पर्याकुल त्वान्मरुतां वेगभंगोऽनुमीयते। 2/25 उनचासों पवन ऐसे क्यों दिखाई पड़ रहे हैं, जैसे वे घबराहट से मन्दे पड़ गए हों। अन्तश्चराणां मरुतां निरोधान्निवातनिष्कम्पमिव प्रदीपम्। 3/48 शरीर के भीतर चलने वाले सब पवनों को रोककर वे ऐसे अचल हुए बैठे हैं, जैसे पवन रहित स्थान में खड़ी लौ वाला दीपक हो। मेरुमेत्य मरुदाशु गोक्षकः पार्वती स्तन पुरस्कृतान्कृती । 8/22 पवन के समान वेग से चलने वाले उस बैल पर चढ़कर और आगे पार्वती को बैठाकर, उनके स्तन पकड़े हुए वे मेरु पर्वत पर जा पहुंचे। मारुते चलति चण्डिके बलाद्व्यज्यते बिपरिवृत्तमंशुकम्। 8/71 वायु के चलने पर जब कपड़े हिलने लगते हैं, तब अपने आप पता चल जाता है कि यह कपड़ा ही है। पद्मभेदापिशुनाः सिषेविरे गन्धमादनवनान्त मारुताः।। 8/86_
उस समय गन्धमादन वन के पवन के छू जाने से मानो कमल खिलते जा रहे थे। 4. वात :-पुं० [वातीति, वा+क्त भूतम्, गन्धवहः] वायु, पवमान ।
प्रवात नीलोत्पलनिर्विशेषमधीर विप्रेक्षित मायताक्ष्या। 1/46 उन बड़ी-बड़ी आँखों वाली की चितवन, आँधी से हिलते हुए नीले कमलों के
समान चंचल थी। 5. वायु :-पुं० [वातीति वा, गतिगन्ध नयोः] वायु।
यद्वायुरन्विष्ट मृगैः किरातैरा सेवव्यते भिन्नशिखण्डिबर्हः। 1/15 किरातों की कमर में बँधे हुए मोर पंखों को फहराने वाला यहाँ का शीतल मन्द सुगन्ध पवन उन किरातों की थकान मिटाता चलता है, जो मृगों की खोज में हिमालय पर इधर-उधर घूमते रहते हैं। न वाति वायुस्तत्पार्वे तालवृन्ता निलाधिकम्।। 2/35 पवन भी उसके पास पंखे के वायु से अधिक वेग से नहीं बहता।
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