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कालिदास पर्याय कोश
उन्हें देखते ही नारदजी ने यह भविष्यवाणी कर दी कि वह कन्या अपने प्रेम से शिवजी के आधे शरीर की स्वामिनी और उनकी अकेली पत्नी बनकर रहेगी नादत्ते केवलां लेखां हर चूड़ा मणी कृताम्।। 2/34 केवल उस एक कला को छोड़ा देता है, जिसे शिवजी ने अपने मस्तक का मणि बना लिया है। कुर्यां हरस्यापि पिनाकपाणेधैर्यच्युतिं के मम धन्विनोऽन्ये। 3/10 पिनाक धारण करने वाले स्वयं महादेवजी के छक्के छुड़ा दूं, फिर और दूसरे धनुषधारियों की तो गिनती हो क्या। श्रुताप्सरोगीतिरपि क्षणेऽस्मिन् हरः प्रसंख्यान परो बभूव ।। 3/40 इस बीच अप्सराओं ने भी अपना नाच-गाना आरम्भ कर दिया पर महादेवजी टस से मस न हुए। उमासमक्षं हरबद्धलक्ष्यः शरासन ज्यां मुहराममर्श। 3/64 बस वह पार्वती जी के आगे बैठे हुए शिवजी पर ताक-ताक कर धनुष की डोरी खींचने ही तो लगा। ददृशे पुरुषाकृति क्षितौ हरकोपानल भस्म केवलम्। 4/3 देखती क्या हैं, कि महादेवजी के क्रोध से जली हुई पुरुष के आकार की एक राख की ढेर सामने पृथ्वी पर पड़ी हुई है। परिणेष्यति पार्वतीं यदा तपसा तत्प्रवणी कृतो हरः। 4/42 जब पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव जी उनके साथ विवाह कर लेंगे। उवाच चैनं परमार्थतो हरं न वेत्सि नूनं यत एवमात्थ माम्। 5/75
और बोलीं-तब आप महादेवजी को भली प्रकार जानते ही नहीं, जो मुझसे इस प्रकार कह रहे हैं। हरोपयाने त्वरिता बभूव स्त्रीणां प्रियालोकफलो हि वेशः। 7/22 महादेव जी से मिलने के लिए मचल उठीं क्योंकि स्त्रियों का श्रृंगार तभी सफल होता है, जब पति उसे देखे। विष्णोर्हरस्तस्य हरिः कदाचिद्वेधास्त योस्तावपि धातु राद्यौ। 7/44 कभी शिवजी विष्णु से बढ़ जाते हैं, कभी ब्रह्मा इन दोनों से बढ़ जाते हैं और कभी ये दोनों ब्रह्मा से बढ़ जाते हैं।
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